टिहरी गढ़वाल
संस्कृति: उत्तराखण्डी रिवाज, भैला के हैं मुरीद, इस जगह पर आकर जोड़ें अपनी विरासत
टिहरी। हमारी संस्कृति हमारी विरासत स्वरोजगार और संस्कृति संरक्षण का बेजोड़ मेल, यदि आप चम्बा (टिहरी) से ऋषिकेश की ओर आ रहे हैं तो चम्बा से ऋषिकेश की ओर कुछ किलोमीटर की दूरी पर आपको सड़क किनारे दो युवक मिलेंगे जो हमारी विलुप्त होती “भैला” परम्परा को संरक्षण और संजोने का कार्य कर रहे हैं, दीपावली के समय “भैला” घुमाना हमारी एक पौराणिक और पुरातन परम्परा रही है।
बुजुर्ग बताते हैं कि इससे सभी कष्ट दूर होते हैं, “भैला” का प्रयोग करने के लिए उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है फिर उसे सिर के ऊपर या शरीर के दाएं बाएं ओर घुमाया जाता है इसका यदि वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो उससे निकलने वाली अग्नि आस पास की बीमारी को भी नष्ट करती है।
उत्तराखंड टुडे आपसे अपील करता है कि यदि आप भी “भैला” के शौकीन हैं और अपनी संस्कृति को करीब से देखना चाहते हैं तो इन युवकों के प्रयास को सफल करने में सहयोग करें।
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