उत्तराखंड
पंजाब के बाद उत्तराखंड में भी हरीश रावत के दलित सीएम दांव से ‘उलझी सियासत’…
देहरादून: इन दिनों कांग्रेस हाईकमान खूब खुश है। इसका कारण कांग्रेस का ‘नया दलित सियासी दांव’ है। पंजाब में कई महीनों से जारी सियासी संकट को गांधी परिवार ने भले ही देर से सही लेकिन दूर का ‘शॉट’ खेला है। पंजाब में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से उत्साहित कांग्रेस ने यही ‘फॉर्मूला’ उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी अलापना शुरू कर दिया है। सोमवार को चन्नी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कांग्रेस पंजाब प्रभारी और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चंडीगढ़ से देहरादून लौटते ही उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए भी दलित सीएम का दांव चल दिया।
बता दें कि ‘हरिद्वार के लक्सर में आयोजित परिवर्तन यात्रा के दौरान हरीश रावत ने कहा कि मैं मां गंगा से प्रार्थना करता हूं कि मेरे जीवन में भी ऐसा क्षण आए जब उत्तराखंड से एक दलित और गरीब शिल्पकार के बेटे को इस राज्य का मुख्यमंत्री बनता देख सकूं’। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग कितना हमारे साथ है, यह अहम नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि दलित समाज ने कितने वर्षों तक कांग्रेस को सहारा देकर केंद्र व राज्यों में सत्ता में पहुंचाने का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि अवसर मिला तो उनकी आकांक्षाओं के साथ कांग्रेस चलेगी। उन्होंने कहा कि पंजाब में दलित परिवार के बेटे को बनाकर कांग्रेस ने ‘मिसाल’ कायम की है। दो दिनों से राज्य की सियासी गलियारे में हरीश का अचानक उमड़ा दलित प्रेम सुर्खियों में है। हरीश रावत का दलित सीएम बनाने का बयान ऐसे समय आया है जब वो राज्य के सबसे बड़े कांग्रेसी नेता हैं और 2022 के चुनाव में पार्टी के सत्ता में लौटने की स्थिति में उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे रहने वाले नेता के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में उन्होंने खुद के बजाय दलित सीएम का दांव खेलकर एक साथ कई सियासी समीकरण साधे हैं।
राज्य में कांग्रेस की गुटबाजी के बीच हरीश ने अचानक खेला दलित कार्ड—
विधानसभा चुनाव के लिए अपने आप को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए हरीश रावत हाईकमान से अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं । दूसरी ओर राज्य कांग्रेस में काफी समय से नेता दो गुटों में बंटे हुए हैं। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और हरीश रावत के बीच मनमुटाव जग जाहिर है। प्रीतम सिंह नहीं चाहते कि कांग्रेस हरीश रावत को सीएम का चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतरे बल्कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे हैं । वहीं हरीश रावत शुरू से अपने आप को सीएम के चेहरे के रूप में प्रकट कर रहे थे। ऐसे में हरीश रावत ने खुद को सीएम की रेस से बाहर करते हुए ‘दलित कार्ड’ खेल दिया है, जिस का प्रीतम सिंह भी विरोध नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने इशारों में कहा कि राज्य में दलित मुख्यमंत्री जरूर बनना चाहिए था, 2002 में बनना चाहिए था, 2012 और 2013 में भी बनना चाहिए था। यही नहीं प्रीतम सिंह ने कहा है कि ‘बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते’। दूसरी ओर उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने हरीश रावत के दलित मुख्यमंत्री बनाने वाले बयान का समर्थन किया है। अब आइए जान लेते हैं राज्य में दलितों की आबादी का अनुपात। उत्तराखंड में अनुसूचित जाति की आबादी 18.50 फीसदी के करीब है। 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 18,92,516 है। उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में दलित आबादी 10.14 लाख है जबकि तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में 8.78 लाख है। सूबे में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी हरिद्वार जिले में 411274 है।
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