उत्तराखंड
शरदोत्सव विशेष: चंद्रमा से बरसता अमृत तो चांदनी करती उत्सव, शरद पूर्णिमा की रात खीर में आती है ‘मिठास’…
दिल्लीः आमतौर पर हम लोग दिन की बात करते हैं लेकिन आज बात करेंगे रात की। एक ऐसी रात जिसमें पर्व, उत्सव के साथ सदियों पुरानी कई धार्मिक परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं। इस चांदनी रात का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। जी हां हम आज चर्चा करेंगे शरद पूर्णिमा की। अश्विन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। सुबह से ही सोशल मीडिया पर बधाई-शुभकामनाओं का संदेश देने का सिलसिला जारी है। कहीं-कहीं यह त्योहार कल यानी 20 अक्टूबर को भी मनाया जाएगा। वैसे तो पूर्णिमा पूरे साल में 12 बार आती है लेकिन शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में विशेष महत्व के साथ कई प्राचीन धार्मिक आस्थाओं की याद दिलाती है। ‘इस रात चंद्रमा अपने पूरे यौवन पर रहता है, ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है’। चंद्रमा से निकलने वाली किरणें अमृत समान मानी जाती हैं, कहावत ये भी है कि शरद पूर्णिमा की रात आसमान से ‘अमृत’ बरसता है। मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, इसलिए चांद की रोशनी पृथ्वी को अपने आगोश में ले लेती है। चांदनी पूरी रात उत्सव करती है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं । जो भी मनुष्य शरद पूर्णिमा की रात्रि को जागरण करता है, मां लक्ष्मी उससे प्रसन्न होती हैं। आसमान से बरसते अमृत के बीच हमारे देश में ‘खीर’ खाने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। मान्यता है कि चंद्रमा से निकलने वाली किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसलिए इस दिन चंद्रमा को भोग में खीर अर्पित की जाती है और इसे खुले आकाश के नीचे रखा जाता है जिससे खीर में भी चद्रमा की रोशनी पड़े और इसमें भी अमृत का प्रभाव हो सके। इस दिन से शीत ऋतु की शुरुआत भी होती है । शरद पूर्णिमा का व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि यही वो रात है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। धार्मिक मान्यता है कि श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि भगवान राम के पास 12 कलाएं थीं। बता दें कि पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ आज, 19 अक्टूबर को शाम 7 बजे से शुरू हो कर 20 अक्टूबर को रात्रि 8 बजकर 20 मिनट तक होगा। पूर्ण चंद्र दर्शन 19 अक्टूबर की रात्रि को होगा और इस दिन चंद्रमा पूर्ण कलाओं से युक्त होगा। इस रात चंद्रमा को खीर का भोग लगाया जाता है। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं और न ही धूल-गुबार। भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है। बता दें कि शरद पूर्णिमा की रात चांद पृथ्वी के सबसे निकट होता है।
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा के साथ मां लक्ष्मी और विष्णु की होती है उपासना–
यह पर्व मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए खास माना जाता है। कहते हैं इस रात मां लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं। बता दें कि चंद्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु की पूजा का विधान है। शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस वजह से देश के कई हिस्सों में मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसे ‘कोजागरी लक्ष्मी पूजा’ के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। लक्ष्मी के आठ रूप धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करें और मंदिर को साफ करें। इसके बाद पूजा के लिए एक साफ चौकी में लाल या पीले रंग का कपड़ा डालकर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति रखें। इसके बाद गंगाजल छिड़कें और फूल, माला चढ़ाकर सिंदूर, रोली, अक्षत लगाएं फिर सफेद या पीले रंग का भोग लगाएं। इसके बाद घी का दीपक जलाते हुए कथा पढ़ें।
विवाहित महिलाओं के लिए शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से मनोकामनाएं होती है पूरी—
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। नारद पुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीर्वाद देती हैं। शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मानसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है। फिर 12 बजे के बाद उसका प्रसाद ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि इस खीर में अमृत होता है और यह कई रोगों को दूर करने की शक्ति रखती है।
मान्यता है, इस रात कृष्ण की बजाई बांसुरी पर गोपियां खींची चली आईं थी—
शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण के मंदिराें गर्भगृह में शरद का खाट सजाया जाता है। खाट पर चौसर और शतरंज की झांकी भी सजाई जाती है। चंद्रमा की शीतल चांदनी में रखी खीर का भोग भी ठाकुरजी को अर्पण किया जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्वनि से सम्मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया। पूरी रात कृष्ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे ‘महारास’ कहा जाता है। मान्यता है कि कृष्ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया। ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्य की करोड़ों रातों के बराबर होता है।
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