उत्तराखंड
Big Breaking: उत्तराखंड के विद्यार्थियों में UGC के इस नियम के विरुद्ध रोष, लगाए गंभीर आरोप…
देहरादून: देश में उच्च शिक्षा में नौकरी पाने वाले सभी छात्रों का सपना होता है कि वे असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति पायें। इसके लिए अभी तक जो व्यवस्था थी उसके अनुसार स्नातकोत्तर के बाद NET या PHD न्यूनतम अहर्ता रखी जाती थी और उसके पश्चात प्रवेश परीक्षा एवं इंटरव्यू के आधार पर एक मेरिट बनाकर नियुक्ति की जाती थी । अब 2018 में UGC अर्थात विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जो कि देश में उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में सर्वोच्च संस्था है के द्वारा UGC Regulation 2018 जारी किया गया। जिसके अनुसार उच्च शिक्षा ( डिग्री कॉलेज तथा विश्वविद्यालय ) में अब भर्ती हेतु लिखित परीक्षा के बदले API व्यवस्था को लागू किया गया।
जिसके अंतर्गत अब अभ्यर्थी के स्नातक एवं स्रातकोत्तर में प्राप्त अंक , पीएचडी NET , पब्लिकेशन तथा अनुभव आधार पर 100 में से एक score बनाया जाता है तथा इस प्रक्रिया से shortlist हुए अभ्यर्थियों को इंटरव्यू के बुलाया जाता एवं उसके पश्चात अंतिम मेरिट के आधार पर नियुक्ति होती है । चूँकि ये नियम अचानक आए तो UGC द्वारा इनके लागू करने कि तिथि जुलाई 2021 रखी गयी। ताकि छात्र अपनी पीएचडी पूरी कर पायें क्योंकि API में पीएचडी के 25 ( यूनिवर्सिटी के लिए 30 ) अंक है जबकि के केवल 8 , तो इसी कड़ी में वर्ष 2021 में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर के 455 पदों हेतु विज्ञापन जारी किया गया। जिसमे पूर्व कि भांति लिखित परीक्षा न करवाकर API को आधार बनाया गया।
जिससे सभी छात्रों में रोष अब हम बिन्दुवार समझें कि उत्तराखंड के विद्यार्थियों में इसके लिए रोष क्यों है
1- उत्तराखंड एक पिछड़ा एवं पहाड़ी राज्य है जहाँ कम ही छात्र पीएचडी किये हुए हैं और आलम ये है कि गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय ने स्थापना से आजतक कभी पीएचडी नहीं कराया है , केवल Kumaun University ही नियमित पीएचडी करा रहा है लेकिन उसमे से भी कितने छात्र उत्तराखंड के हैं ये बड़ा प्रश्न है , इसलिए इस व्यवस्था का फायदा अन्य राज्य के अभ्यर्थियों को ही मिलेगा ।
2- इसके अतिरिक्त हम जानते हैं कि वर्ष 2020 तथा 2021 कोरोना वैश्विक महामारी कि चपेट में रहा जिसके कारण हजारों योग्य अभ्यर्थी कहीं पीएचडी में प्रवेश नहीं ले पाए तो कुछ अपनी पीएचडी पूरी ही नहीं कर पाए इसके लिए UGC ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों को UGC regulation 2018 को लागू करने कि तिथि को बढाकर 2023 कर दिया है तो ऐसे में उत्तराखंड क्यों इस विभेदपूर्ण व्यवस्था को अभी लागू कर रहा है ।
हम सभी जानते हैं कि केंद्र सरकार ग्रेजुएशन में प्रवेश हेतु मेरिट को छोड़कर लिखित परीक्षा करवा रही है जबकि यहाँ इससे इतर API या मेरिट को वरीयता दे रही है जो कि समझ से परे है , इसके अतिरिक्त सभी पड़ोसी राज्य जैसे उत्तर प्रदेश मध्य प्रदे राजस्थान , पंजाब एवं छत्तीसगढ़ API को छोड़कर असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती हेतु पारदर्शी लिखित परीक्षा आयोजित करा रहे हैं उत्तराखंड जैसा प्रदेश जहाँ इतने कम लोग पीएचडी धारक हैं API प्रक्रिया को क्यों अपना रहा है ?
4 एपीआई व्यवस्था का पूरा फायदा बाहर के राज्यों के अभ्यर्थियों को मिलेगा जो कि UKPSC द्वारा हाल में जारी cut – off से साफ़ दिखाई देता है जिसमे सभी विषयों में मेरिट 90 से अधिक गयी है और हजारों ऐसे छात्र जो कि पीएचडी भी किये हुए हैं वो cut – off में जगह नहीं बना पाए हैं तो ऐसे में जो केवल NET JRF पास अभ्यर्थी हैं वो तो 50 भी बमुश्किल पार कर पाए हैं ।
5- उपरोक्त तथ्यों की हकीक़त को आरक्षित अभ्यर्थियों तथा अनारक्षित अभ्यथियों की मेरिट के बीच के अंतर से साफ़ समझा जा सकता है जो कि सभी विषयों में औसत 50 से अधिक है , ये सीधा दर्शाता है कि इसका फायदा केवल बाहर के राज्यों के छात्रों को ही हुआ है ।
6- अपने ही राज्य में ऐसा सौतेला व्यवहार सही नहीं है जबकि अन्य राज्यों में लिखित परीक्षा में भी कुछ न कुछ ऐसे प्रावधान होते ही हैं जिससे वहां के मूल अभ्यर्थी को फायदा मिले , उदाहरण के लिए राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में लिखित परीक्षा में वहां के राज्य विशेष के कुछ अनिवार्य प्रश्न होते हैं तो पंजाब में असिस्टेंट प्रोफेसर में भर्ती हेतु मेट्रिक में पंजाबी भाषा की अनिवार्यता है लेकिन उत्तराखंड जैसे छोटे और कम संसाधनयुक्त राज्य में सभी को खुला अवसर दिया जा रहा है जो कि राज्य के योग्य विद्यार्थियों एवं राज्य आन्दोलनकारियों के स्वप्नों के खिलाफ प्रतीत होता है ।
7- राष्ट्रीय स्तर पर जहाँ न्यूनतम अहर्ता के लिए national eligible test अर्थात NET कि परीक्षा होती है वहीं राज्य कि भौगोलिक एवं भाषायी असमानताओं के चलते राज्य में State Eligible Test ( SET ) का भी प्रावधान है , यह याद दिलाना उचित है कि राज्य में 2017 के बाद से SET की परीक्षा नहीं हुई है तथा कोरोना महामारी के चलते NET की परीक्षा भी समय पर ( लगभग 18 माह बाद ) नही हो पायी हैं ऐसे में लाखों युवा छात्र जो इस परीक्षा में सम्मिलित होकर न्यूनतम अहर्ता प्राप्त कर सकते थे वो इससे वंचित रह गए हैं।
8- अंततः यही कहना है कि विभेदपूर्ण और अन्यायी API व्यवस्था से हजारों योग्य छात्र बिना अपनी योग्यता दिखाए अपने सपने को पूरा करने से वंचित रह गए हैं , इसलिए हम राज्य के माननीय उच्च शिक्षा मंत्री एवं युवा मुख्यमंत्री जी से हजारों योग्य छात्रों की और से निवेदन करते हैं कि वे हम सबकी पीड़ा समझते हुए इस API व्यवस्था के आधार पर हुई नियुक्ति प्रक्रिया को तत्काल रद्द करें एवं लिखित परीक्षा के माध्यम से ही पूर्व कि भांति पारदर्शी तरीके से प्रक्रिया संपन्न कराने की कृपा करें , इसके लिए हम सभी छात्र आपका जीवन भर आभारी रहेंगे ।
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