देहरादून
रिपोर्ट: कैग रिपोर्ट से हैरान कर देने वाला खुलासा, उत्तराखंड में राजकोषीय घाटा 7657 करोड़ रुपये पहुंचा…
देहरादून: उत्तराखंड में चुनाव नजदीक है। ऐसे में सियासी दल सत्ता में आने के बाद राज्य के लोगों को मुफ्त बिजली देने का दावा कर रहे हैं। लेकिन शायद उन्हें मालूम नहीं कि उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया हैं। कैग रिपोर्ट से राज्य की जो तस्वीर सामने आई है। वह तमाम विकास के दावों की भी पोल खोलती हैं। उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड(यूपीसीएल) पिछले साल तक 577.31 करोड़ के घाटे में था। इतना ही नहीं राज्य के 20 उपक्रम घाटे में है। जबकि सिर्फ 10 कंपनियां ही मुनाफे में चल रही हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र के 30 उपक्रमों में से 13 उपक्रम को 31 मार्च 2020 तक 634.28 करोड़ का घाटा हुआ। इसमें से 577.31 करोड़ यानी कुल घाटे का 91 प्रतिशत योगदान यूपीसीएल का है। इनमें से 12 उपक्रमों का घाटा महज नौ फीसदी रहा जबकि शेष लाभ न घाटे में रहे हैं।
आपको बता दें कि कैग की रिपोर्ट गुरुवार को विधानसभा पटल पर रखी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 3.02 फीसद हो गया है, जबकि राजस्व घाटा जीएसडीपी का 0.84 फीसद रहा। वित्तीय वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा 7657 करोड़ रुपये जा पहुंचा तो इसमें राजस्व घाटा 15 फीसद बढ़कर 2136 करोड़ रुपये हो गया। वित्तीय वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा 7320 करोड़ रुपये था, जबकि राजस्व घाटा 980 करोड़ रुपये था। कैग ने पाया कि राजस्व घाटे में 273 करोड़ रुपये (12.78) फीसद दिखाए ही नहीं गए। राजकोषीय घाटे में भी 446 करोड़ रुपये (5.82 फीसद) कम दिखाए गए। राजस्व व पूंजीगत व्यय के गलत वर्गीकरण व ब्याज की देयता को हस्तांतरित न किए जाने के चलते यह अनियमितता पैदा हुई। हालांकि, उत्तराखंड शासन इस बात पर सुकून महसूस कर सकता है कि 7657 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा 14वें वित्त आयोग की ओर से जीएसडीपी के मुकाबले निर्धारित 3.25 फीसद की सीमा के भीतर रहा। आपको बता दें कि उत्तराखंड सरकार के कई विभाग विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित 259 करोड़ की धनराशि को समय पर खर्च नहीं कर पाए। इस वजह से वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन इस बजट को सरेंडर करना पड़ा। इससे न केवल उन विकास योजनाओं में देरी हुई बल्कि अन्य जरूरी योजनाओं के काम भी यह धनराशि नहीं आ पाई। कैग ने राज्य में विभागों की इस कार्य प्रणाली पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न विभागों की वजह से फंड पार्किंग की गई जिससे एक तरह से राज्य को नुकसान उठाना पड़ा।
गौरतलब है कि राज्य में बजट आवंटन का काम पिछले वर्षों में आमतौर पर काफी देरी से होता रहा है। इस वजह से विभागों को बजट फरवरी या मार्च के महीने में मिलता है और विभाग अंतिम समय पर मिली धनराशि को खर्च नहीं कर पाते। जिस कारण विकास योजनाएं पिछड़ रही है। कैग ने कहा कि वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन 259 करोड़ सरेंडर किए जाने से कई अन्य जरूरी कार्यों के लिए भी धनराशि नहीं मिल पाई। कैग ने कहा है कि राज्य सरकार द्वारा अपने बजट में किए गए कुल 51,197 करोड़ के प्रावधान में से 3224 करोड़ खर्च नहीं हो पाए। इस राशि की एक तरह की बचत हो गई। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार द्वारा लाए गए अनुपूरक मे से भी 2481 करोड़ का प्रावधान भी अनावश्यक किया गया। क्योंकि इस धनराशि का उपयोग ही नहीं किया गया।
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