रुद्रप्रयाग
आस्था: भगवान बलभद्र मन्दिर में होती है भक्तों की मनोकामना पूरी, कृष्ण काल से जुड़ा है मंदिर..
केदार घाटी/ऊखीमठ: अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशान्ति, सुख व अमृत्व को प्राप्त नहीं कर सकते। सतलोक में जाना तभी सम्भव है जब हम पूर्ण संत से उपदेश लेकर पूर्ण परमात्मा की आजीवन भक्ति करते रहे। यदि एक आत्मा को सतभक्ति मार्ग पर लगाकर उसका आत्म कल्याण करवा दिया जाए तो करोड़ अवश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है तथा उसके बराबर कोई भी धर्म है। सतलोक व सतभक्ति के लिए देवभूमि उत्तराखण्ड की माटी युगों से पूजित रही है इसलिए देवभूमि उत्तराखंड की माटी में युगीन पुरुष जगत कल्याण के लिए वर्षों से तपस्यारत हैं। देवभूमि उत्तराखंड के तीर्थों के स्मरण मात्र से ही मनुष्य धन्य हो जाता है तथा उसकी लौकिक व पारलौकिक दोनों उद्देश्यों की समान रूप से पूर्ति होती है। देवभूमि उत्तराखंड के पग-पग पर विराजमान हर तीर्थ की अपनी विशिष्ट पहचान है मगर केदार घाटी के त्यूडी गाँव में विराजमान बलभद्र भगवान के दर पर जो व्यक्ति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते है। लोक मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण कंस के साथ ही सभी दुष्ट राक्षसों का वध किया तो बलराम ( बलभद्र, दाऊ भैया) उत्तर दिशा हिमालय की यात्रा पर निकले। हिमालय आगमन के दौरान केदार घाटी के त्यूडी गाँव से लगभग चार किमी दूर बलराम जी का सामना भीमासुर राक्षस से हुआ, वह बहुत शक्तिशाली था इसलिए कई दिनों तक दोनों का भीषण युद्ध हुआ। कई दिनों तक चले युद्ध के बाद भी बलराम जी भीमासुर का वध न कर सके तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया। दाऊ भैया के स्मरण करने पर भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए तथा दोनों भाईयों ने मिलकर भीमासुर राक्षस का वध किया। भीमासुर राक्षस के वध के बाद दाऊ भैया को वह स्थान अत्यधिक प्रिय लगा तथा जगत कल्याण के लिए उसी स्थान पर तपस्यारत हो गये तब से वह स्थान सोंला नारायण के नाम से विख्यात हुआ।
आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व की बात है कि सौंला नारायण तीर्थ के निकट कुछ पशुपालक रहते थे तो एक गाय ब्रह्म बेला पर नित्य सौंला नारायण तीर्थ जाकर अपने थनों से बलभद्र भगवान के स्वयभू लिंग पर दूध अर्पित करती थी, गाय पालक को जब इस बात का एहसास हुआ तो उसने एक रात्रि भर जागर किया तथा सुबह गाय का पीछा करते हुए सौंला नारायण पहुंचा, ज्यो ही गाय बलभद्र भगवान के स्वयभू लिंग पर दूध अर्पित करने लगी तो गाय पालक बड़ा क्रोधित हुआ तथा कुल्हाड़ी से वार किया तो गाय अर्न्तध्यान हो गयी। गाय जब अपने प्रवास स्थान पर वापस आयी तो गाय के खूटें पर देखकर वह हैरान हो गया। कुछ दिनों बाद गाय पालक के मन में एक मुक्ति सूझी कि मैं इन सभी लिंगों को मन्दाकिनी में विसर्जित करूँगा तथा गाय पालक ने एक रिगाल की कड़ी मे सौंला नारायण से सभी लिंगों को कड़ी में रखा तथा सभी लिंगों को डोडर नामक स्थान पर लाया तो उस स्थान पर एक लिंग धरती में स्थापित हो गया। गाय पालक जब लिंगों की कड़ी लेकर जोड़ नामक स्थान पर पहुंचा तो वहाँ पर भी कुछ लिंग स्थापित हो गये। गाय पालक जब त्यूडी गाँव में पहुंचा तो कड़ी का तला अपने आप टूट गया तथा सारे लिंग धरती में विराजमान हो गये। ज्यो ही सारे लिंग धरती में विसर्जित हुए तो भगवान बलभद्र स्वयं प्रकट हुए तथा गाय पालक से कहा कि तुम्हारा हमेशा कल्याण हो इसलिए मुझे इसी स्थान पर तपस्यारत रहने दो। आज से युगों पूर्व जब त्यूडी गाँव में मानव का आवागमन हुआ तो उस पावन स्थान पर मन्दिर का निर्माण कर भगवान बलभद्र की स्थापना की गयी तथा भगवान बलभद्र त्यूडी गाँव के ग्रामीणों के अराध्य बन गये, आज भी त्यूडी गाँव में भगवान बलभद्र को मूर्ति रूप में तथा सौंला, डोडर व जोड़ में लिंग रूप में पूजे जाते है। वर्ष 2017 में त्यूडी गाँव के ग्रामीणों, केदार घाटी के जनमानस व केदारनाथ विधायक मनोज रावत के अथक प्रयासों से लगभग 40 लाख रुपये की लागत से बलभद्र के मन्दिर व मन्दिर परिसर को भव्य रुप दिया गया। भगवान बलभद्र को दाऊ भैया या दाऊ देवता के रूप में भी पूजा जाता है। बलभद्र जी मन्दिर में थोड़ा भी अपवित्रता होने पर बलभद्र जी नाग रूप में प्रकट होते है।
मठापति कलम सिंह धिरवाण, तमेर दयाराम बहुगुणा दौलत सिंह रावत, गब्बर सिंह सेमवाल बताते है कि त्यूडी गाँव में विराजमान बलभद्र भगवान के मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। अपने स्वेच्छा से ग्रामीण तीन दिन पूर्व फलाहार रहकर नंगे पांव केदारनाथ के ऊपरी भूभाग वासुकी ताल ब्रह्म कमल लेने जाते है तथा वहाँ से ब्रह्म कमल लेकर गाँव पहुंचते है। बताया कि प्रथम ब्रह्म कमल भगवान बलभद्र को अर्पित कर रात्रि भर अखण्ड कीर्तन-भजन कर चारों पहर चार आरती उतार कर भगवान श्रीकृष्ण, बलभद्र व तैतीस कोटि देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता है तथा दूसरे दिन भगवान श्री कृष्ण व बलभद्र की झाकी निकाली जाती है। उत्तम सेमवाल, महादेव धिरवाण, सूरज सेमवाल, अशोक बहुगुणा, राय सिंह रावत ने बताया कि भगवान बलभद्र के मन्दिर में वैशाखी पर्व पर तीन दिवसीय मेले की परम्परा प्राचीन है इस दौरान गाँव की सीमाओं को शील करने की परम्परा है तथा बाहरी गाँव के लोगों का त्यूडी गाँव आगमन वर्जित हो जाता है। बताया कि वैशाखी पर्व पर भगवान बलभद्र की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा क्षेत्रपाल की मूर्ति थौला के लिए रवाना होती है, अखण्ड ध्वनि प्रज्ज्वलित की जाती है तथा दूसरे दिन नौनिहालों व दिशा धियाणियों के लिए आरसे सहित अनेक पकवान बनाये जाते है। बीरेन्द्र सेमवाल, कीर्ति राम बहुगुणा, बलवीर सेमवाल, छोटिया सेमवाल ने बताया कि तीन गते वैशाख को भगवान बलभद्र जी अपने तपस्थली से नगर भ्रमण करते हुए ग्रामीणों, धियाणियों को आशीष देते हुए थौला पहुंचने है तथा वहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण बलभद्र व भीमासुर राक्षस का युद्ध नाटक रुप दिखाया जाता है तथा पौराणिक जागरों के माध्यम से देवताओं की महिमा का गुणगान किया जाता है तथा अखण्ड ध्वनि विसर्जित के तीन दिवसीय मेले का समापन हो जाता है। उदय सेमवाल, अमर सिंह धिरवाण, गब्बर सिंह रावत, गोविन्द सिंह रावत बताते है कि भगवान बलभद्र के मन्दिर में सभी भक्तों को मन इच्छा फल की प्राप्ति होती है।
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