उत्तराखंड
उत्तराखंड भू-कानून को लेकर हो सकता है बड़ा फैसला, समिति ने CM धामी को सौंपी रिपोर्ट…
देहरादून: उत्तराखंड में भू-कानून (Uttarakhand Land Law) को लेकर बड़ा अपडेट आ रहा है। भू- कानून को लेकर कमेटी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सीएम ने रिपोर्ट मिलने के बाद कहा कि भू-कानून से संबंधित सभी पक्षों की राय लेते हुए हम प्रदेश के विकास व प्रदेशवासियों के कल्याण हेतु निर्णय लेंगे। समिति ने निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय – विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को सौंपी हैं।
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय में भू-कानून कमेटी के सदस्यों ने भेंट करते हुए इससे संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की है। समिति ने राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार – विमर्श किया। जिसके बाद लगभग 80 पृष्ठों की रिपोर्ट तैयार की गई। भू कानून समिति में अध्यक्ष समेत कुल पांच सदस्य हैं। इसमें समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं।
बताया जा रहा है कि सदस्य के तौर पर दो रिटायर्ड आईएएस अधिकारी डीएस गर्ब्याल और अरुण कुमार ढौंडियाल शामिल हैं। डेमोग्राफिक चेंज होने की शिकायत करने वाले अजेंद्र अजय भी इसके सदस्य हैं। उधर, सदस्य सचिव के रूप में राजस्व सचिव आनंद वर्धन फिलहाल इस समिति में हैं।
ये हैं समिति की प्रमुख संस्तुतियां
- वर्तमान में जिलाधिकारी द्वारा कृषि अथवा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाती है। जिसका रिसोर्ट/ निजी बंगले बनाकर दुरुपयोग हो रहा है। समिति ने संस्तुति की है कि ऐसी अनुमतियां शासन से ही दी जाएं।
- वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी द्वारा प्रदान की जा रही है। हिमांचल प्रदेश की तरह शासन स्तर से न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर अनुमति दी जाए।
- हिमाचल प्रदेश की तरह न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार हो लागू किया जाए।
- केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त 4-5 सितारा होटल / रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट आदि को ही अनिवार्यता प्रमाणपत्र के आधार भूमि क्रय करने की अनुमति शासन से दी जाए। अन्य प्रयोजनों के लिए लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराई जाए।
- गैर कृषि प्रयोजन हेतु खरीदी गई भूमि को एसडीएम 10 दिन में धारा- 143 के अंतर्गत गैर कृषि घोषित करते हुए खतौनी में दर्ज करेगा।
- कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है।
- राज्य सरकार भूमिहीन को अधिनियम में परिभाषित करे।
- भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए जिला / मण्डल / शासन स्तर पर एक टास्क फोर्स बनायी जाए।
- सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं।
- मार्ग अधिकार की व्यवस्था की जाए।
- विभिन्न प्रयोजनों हेतु खरीदी गई भूमि में समूह ग व घ श्रेणीयों में स्थानीय लोगो को 70% रोजगार दिया जाए।
- कितने स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराई जाए।
- वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है इसमें संशोधन कर विशेष परिस्थितयों में यह अवधि तीन वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- पारदर्शिता हेतु क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया ऑनलाइन हो।
- प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल/ औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक प्लाट्स/ बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आबंटन औद्योगिक प्रयोजन के लिए किया जाए।
- जनहित/ राज्य हित में भूमि बंदोबस्त की प्रक्रिया शुरू की जाए।
- भूमि क्रय की अनुमतियों का जनपद एवं शासन स्तर पर नियमित अंकन हो व इन अभिलेखों का रख-रखाव किया जाए।
- धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय/ निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए।
- राज्य में भूमि व्यवस्था को लेकर जब भी कोई नया अधिनियम/ नीति / भूमि सुधार कार्यक्रम चलाया जायें तो राज्य हितबद्ध पक्षकारों / राज्य की जनता से सुझाव अवश्य प्राप्त करें।
- नदी, नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि आदि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे /निर्माण / धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान हो। ऐसे अवैध कब्जों के विरुद्ध प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए।
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