उत्तराखंड
उत्तराखंड में ये गांव बना डेंगू का हॉटस्पॉट, दून में भी डरा रहे हालात, जानिए क्या कहते हैं डॉक्टर…
देहरादून: उत्तराखंड में कोरोना का कहर थम रहा है तो डेंगू कहर बरपा रहा है। रुड़की का गांव डेंगू का हॉटस्पॉट बन गया है तो वहीं राजधानी देहरादून भी इससे अछूती नही है।देहरादून व आसपास के इलाकों में डेंगू की बीमारी फैलाने वाला एडीज मच्छर की सक्रियता ज्यादा है। गुरुवार को भी दून में पांच और व्यक्तियों में डेंगू की पुष्टि हुई है। जनपद में अब तक डेंगू के 76 मामले सामने आ चुके हैं। वहीं डेंगू की चुनौती से पार पाने के लिए स्वास्थ्य विभाग यह दावा कर रहा है कि प्रभावित क्षेत्रों में नगर निगम के सहयोग से दवा का छिड़काव व फागिंग की जा रही है। साथ ही टीम घर-घर जाकर सर्वे कर रही है। जिन स्थानों पर मच्छर का लार्वा मिल रहा है उसे मौके पर ही नष्ट किया जा रहा है। जन सामान्य को डेंगू से बचाव के लिए निरंतर जागरूक किया जा रहा है।
आपको बता दें कि रुड़की क्षेत्र के गाधारोणा गांव में भी डेंगू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक साथ 84 और मरीज मिलने से यहां डेंगू पीड़ितों की संख्या 100 के पार पहुंच गई है। एहतियातन प्रशासन ने गांव को डेंगू का हॉट स्पॉट घोषित कर दिया है। बड़ी संख्या में मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने 75 और लोगों के सैंपल लिए हैं। क्षेत्र के कई और गांवों में भी डेंगू से हाल बेहाल है। गांव में लगातार बढ़ती डेंगू संक्रमित लोगों की संख्या देखते हुए प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने इसे डेंगू हॉट स्पॉट गांव घोषित कर दिया है। ग्रामीणों के अनुसार गांव में हर तीसरे घर में दो से तीन लोग डेंगू और संदिग्ध बुखार से पीड़ित हैं। इसके बावजूद गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम नहीं पहुंची है।
वहीं डॉक्टरों का कहना है कि डेंगू से घबराने की नहीं, इसके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है। नॉर्मल डेंगू में मौत के चांस एक प्रतिशत से भी कम है। इलाज में देरी से स्थिति बिगड़ सकती है। स्थिति गंभीर हो जाए या फिर डेंगू हेमरेजिक फीवर हो, तो चिंता की बात है। पहले ज्यादातर नॉर्मल डेंगू फीवर होता है। सबसे ज्यादा परेशानी तब आती है, जब लोग सेल्फ मेडिकेशन करने लगते हैं। तबियत बिगड़ती है, तो अस्पताल जाते हैं। अगर 100 से ज्यादा बुखार है तो आपको डॉक्टर के पास जरूर जाना चाहिए। दूसरी अहम बात, लोग प्लेटलेट्स पर ध्यान देते हैं कि अगर यह कम होगी तो स्थिति खराब हो जाएगी, जबकि ऐसा नहीं है। प्लेटलेट्स कम होने से तब तक परेशानी नहीं होती, जब तक कहीं से ब्लीडिंग न होने लगे।
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