उत्तराखंड
बूढाकेदार नाथ : जहाँ भोलेनाथ ने बूढ़े ब्राह्मण के भेष में पांडवों को दिए थे दर्शन जानिए बूढाकेदार नाथ की महत्ता
बूढाकेदार नाथ
केदारखंड का गढ़वाल हिमालय तो साक्षात देवात्मा है। जहां से प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के अलावा एक और परम-पावन धाम है बूढ़ा केदारनाथ। यह धाम जिसका पुराणों में अत्यधिक मह्त्व बताया गया है। टिहरी के घनसाली में समुद्र तल से 2,000 मीटर (6,562 फीट) की ऊंचाई पर विराजमान बूढ़ा केदार सबसे प्राचीन केदार है। जब सड़क सुविधा नहीं थी, तब केदारनाथ धाम पहुंचने का यही पैदल मार्ग था। केदारनाथ धाम की यात्रा से पहले बूढ़ा केदार के दर्शन जरूरी माना जाता है ।
सिध्दकूट पर्वत पर सिध्दपीठ माँ ज्वालामुखी का भव्य मन्दिर है। धर्मकूट पर्वत पर महासरताल एवं उत्तर में सहस्रताल एवं कुशकल्याणी प्रसिद्ध क्यारखी बुग्याल है। यक्छकूट पर्वत पर् यक्छ और किन्नरों की उपस्थिति का प्रतीक मंज्याडताल व जरालताल स्थित है।
दक्छिण मॆं भृगुपर्वत एवं उनकी पत्नी मेंनका व अप्सरा की तपॊभूमि अप्सरागिरी श्रृंखला है ।जिनके नाम से मेड गांव व मेडक नदी (मेड गदरु)का अपभ्र्ंस रूप में विध्यामान है। तीन यॊजन छेत्र में फैली हुयी यह् टिहरी रियासत काल में कठूड़ पट्टी के नाम से जानी जाती थी।
फ़ोटो थाती बूढाकेदार गाउँ की
जो कि नैल्डकठूड ,गाजणाकठूड व थातीकठूड़ इन तीन पट्टियों में विभक्त है। इन तीन पट्टियों का केन्द्र स्थल थातीकठूड है।
बूढ़ाकेदार नाथ बृध्द ब्राहमण के रूप में दर्शन पर सदाशिव भोलेनाथ बृध्दकेदारेस्वर या बूढाकेदारनाथ कहलाए।
पुराणों में उल्लिखित है कि गोत्र हत्या से मुक्ति पाने के लिए पांडव जब इस मार्ग से स्वर्गारोहण पर जा रहे थे तो बूढ़ा केदार में शिव ने उन्हें बूढ़े ब्राहमण के रूप में दर्शन दिए थे। शिव के बूढ़े रूप में दर्शन देने के कारण ही इस स्थान का नाम बूढ़ा केदार पड़ा।
फ़ोटो बूढाकेदार मंदिर के रावल अमर नाथ जी
श्रीबूढाकेदारनाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकल लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण(पत्थर) पर भगवान शंकर की मूर्ती,लिंग,श्रीगनणेश जी एवं पांचों पांडवों सहित द्रोपती के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं जबकि बगल में भू शक्ति,आकाश शक्ति व पाताल शक्ति के रूप मॆं विशाल त्रिशूल विराजमान है। साथ ही छेत्र के आराध्य देव कैलापीर देवता का स्थान एक लिंगाकार प्रस्तर के रूप में है। बगल वाले मंदिर पर आदि शक्ति महामाया दुर्गाजी की पाषाण मूर्ती विराजमान है। यहीं पर नाथ सम्प्रदाय का पीर बैठता है।
बाह्य कमरे में भगवान गरुड की मूर्ती तथा बाहर मैदान में स्वर्गीय नाथ पुजारियॊं की समाधियां हैं। केदारखंड में थाती गांव को मणिपुर की संग्या दी गयी है। जहां पर टिहरी नरेशों की आराध्य देवी राजराजेश्वरी का मन्दिर व उत्तर में विशाल पीपल के पेड़ के नीचे छोटा शिवालय है, जहां पर माघ व श्रावण के पावन महीनों में रुद्राभिषॆक होता है। जबकि आदिशक्ति व सिध्दपीठ मां राजराजेश्वरी एवं गुरु कैलापीर देवता की पूजा व्यवस्था टिहरी नरेश द्वारा बसाये गये सेमवाल जाति के लोग करते हैं ।
कुछ पौराणिक मान्यताओं एवं किन्ही अपरिहार्य कारणों से राजमानी एवं छेत्र का प्रसिध्द आराध्य देवता गुरु कैलापीर राजराजेश्वरी मंदिर में वास करता है।श्रीगुरुकैलापीर देवता के नीसाण को उठानॆ वाले सेमवाल जाति के ही लोग हैं, जिन्हें देवता का निज्वाळा कहते है। थाती बूढाकेदार गांव में श्रीगुरुकैलापीर देवता के नाम से मंगसीर प्रतिपदा को बलिराज मेंला लगता है और दीपावली मनाई जाती है मार्गशीर्ष (मंगसीर)के इस दीपावली और और मेले में देवता के दर्शन व भ्रमण हेतु दूर दूर से यहां तक कि विदेशों से भी लोग थाती गांव में आते हैं। इस छेत्र के दूर विदेशों में रहने वाले प्रवाषि इसी समय अपनॆ आराध्य के दर्शन हेतु वर्ष में इसी मौके की इन्तजारी में रहते हैं ।
बूढाकेदार पवित्र तीर्थस्थल होने के साथ-साथ एक सुरम्य एवम एक खूबसूरत पहाड़ी छेत्र है जहां से आप प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद ले सकते हैं । यहां से दो पवित्र जल धाऱायें (नदी) बालगंगा व धर्मगंगा के रूप में प्रवाहित होती है जो आगे जाकर माँ गंगा जी मे समाहित होती है ।यह इलाका अपनी सुरम्यता के कारण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने की पूर्ण छमता रखता है। घनशाली से 28 कि0मी0 दूरी पर स्थित यह स्थल पर्यटको को शांति एवं आनंद प्रदान करने मर सक्छम है। तो आइए आप एक बार जरूर बूढाकेदार की सेर करिए आपको आपका जरूर आनंददायक महसूस होगा। अब यह स्थान मोटर मार्ग से उत्तरकाशी से भी जुड़ गया है जिससे कि पर्यटकों एवम श्रद्धलुओं के लिए ओर जरूरी हो जात है इस पवित्र स्थान को अपनी स्वर्णिम यादगार पलों को अपने जीवन से जोड़े।
गुरु कैलापीर मेले का एक छोटा वीडियो क्लिप
फ़ोटो आभार एडमिन पेज बूढाकेदार नाथ उत्तराखंड
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