उत्तराखंड
गजब: पत्रकारों पर संकट, कंही छंटनी तो कंही मुकदमों से परेशान है संविधान का फोर्थ पिलर
देहरादून। पत्रकार इन दिनों खासे परेशान चल रहे हैं, संस्थानों की कमाई का जरिया विज्ञापन है, लॉक डाउन के चलते विज्ञापन नही मिल रहे तो संस्था से जुड़े कर्मचारियों की सैलरी तो दूर की बात आफिस तक का खर्चा नही निकल पा रहा, यही कारण है कि अब प्रिंट मीडिया की रीढ़ माने जाने वाले फोटो जर्नलिस्टों की छंटनी का सिलसिला शुरू हो चुका है।
यही नही कई बड़े अखबारों ने तो अपने ब्यूरो ऑफिस बंद करने का फ़रमान जारी कर दिया है। उधर, बेबाक लिखने वाले पत्रकारों पर तो मुकदमों की झड़ी मानों आतिशबाजी की तरह लग रही है।
जिसको लेकर पत्रकारों की कई यूनियन इसके लिए आवाज भी उठा चुकी हैं। यही हाल रहे तो आने वाले समय मे पत्रकारों पर बड़ा संकट गहराने वाला है।
Facebook पर एक पोस्ट के आधार पर-
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है कि प्रिंट मीडिया में फोटोजर्नलिस्ट भी हो जाएंगे विलुप्त
- दैनिक जागरण ने अपने सभी फोटोग्राफरों की छंटनी की
- अमर उजाला ने देहरादून से कई पत्रकारों का तबादला किया
- हिन्दुस्तान ने ब्यूरो आफिस को कहा, न किराया देंगे और न कम्पयूटर
गुणानंद जी लिखते है अभी सोकर ही उठा था कि दैनिक जागरण में लंबे समय से काम कर रहे एक फोटाग्राफर का फोन आया, कहा, कुछ नौकरी का जुगाड़ करें।
मैंने पूछा कि क्या हुआ तो पता चला कि दैनिक जागरण ने कल बहुत सारे फोटोग्राफरों की नौकरी ले ली। नौकरी का खतरा है। जागरण इन फोटोग्राफरों को पांच हजार से सात हजार देता रहा है
और प्रबंधन ने बचत और काॅस्ट कटिंग के नाम पर इनकी बलि ले ली। पंजाब केसरी देहरादून ने तो काॅस्ट कटिंग के नाम पर चपरासी की छंटनी कर दी।
अमर उजाला देहरादून से अरुणेश पठानिया समेत कई पत्रकारों को तबादले के नाम पर ठिकाने लगा दिया गया है। क्योंकि कोविड के इस दौर में कौन भला कहां जाएगा? उधर, हिन्दुस्तान प्रबंधन ने
अपने उत्तराखंड में अपने ब्यूरो कार्यालयों को कहा है कि प्रबंधन अब न तो आफिस का किराया देगा और न ही कंप्यूटर। कर लो रिपोर्टिंग। सीधी बात है कि कमाओ और खाओ। हमें भी कमा कर दो।
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