उत्तराखंड
Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध में शांतिप्रिय अटलजी ने अपने राजनीतिक काल में लिए सबसे कठोर फैसले…
आज प्रत्येक देशवासियों के लिए गर्व का दिन है। उन वीर जवानों को नमन करने का दिन है, जिन्होंने देश की खातिर अपने प्राण भी न्योछावर कर दिए। ’22 साल पहले हमारे बहादुर जवानों ने पाकिस्तान को धूल चटाते हुए विजय का तिरंगा फहरा दिया था’। आज 26 जुलाई है । यह इतिहास का वह दिन है, जिस दिन भारत ने साल 1999 में करीब 2 महीने तक चले कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी । देश आज करगिल विजय दिवस की 22वीं सालगिरह मना रहा है।
देशवासी उसी युद्ध की याद करते हुए शहीदों की वीरगाथाओं को याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं। भारत के रणबांकुरों ने पाकिस्तान को जो करारी मात दी थी, उस इतिहास को आज याद करने का दिन है। इस मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना के शौर्य को याद करते हुए नमन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा कि आज करगिल दिवस के मौके पर हम उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान दी।
उनकी बहादुरी हमें हर दिन प्रेरणा देती है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस मौके पर लिखा कि कारगिल विजय दिवस के अवसर पर मैं भारतीय सेना के अदम्य शौर्य, पराक्रम और बलिदान को नमन करता हूं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस मौके पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। आइए आज आपको 22 वर्ष पहले लिए चलते हैं । जब पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध भारत पर ‘थोपा’ था उस समय अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे ।
अटलजी के समय यह युद्ध एक चुनौती से कम नहीं था, क्योंकि उनका शांतप्रिय और कवि व्यक्तित्व राष्ट्र की सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालोें के खिलाफ उठ खड़ा हुआ था । पहले अटल जी ने पाकिस्तान से ‘दोस्ती’ का हाथ बढ़ाया था लेकिन जब पड़ोसी ने विश्वासघात किया तब अटल जी मुंहतोड़ जवाब देने में पीछे नहीं रहे । यहां हम आपको बता दें कि 1998 में भारत के द्वारा किए गए परमाणु विस्फोटों से पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ था ।
हालांकि कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तान ने भी परमाणु विस्फोट करके भारत को जवाब दिया था । दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल उत्पन्न हो गया। लेकिन अटलजी तो शांतिप्रिय व्यक्ति थे। उन्होंने दुश्मनी भरे माहौल को दोस्ती में बदलने का निर्णय लिया और बस से यात्रा कर लाहौर पहुंचे जहां तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उनका भव्य स्वागत किया। अटल जी के इस फैसले से पाकिस्तानी आवाम ने खूब सराहा ।
लेकिन दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय में बैठे आर्मी चीफ ‘परवेज मुशर्रफ को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। मुशर्रफ की नाराजगी तभी सामने आ गयी थी जब भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत के दौरान प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए मुशर्रफ ने अटलजी का अभिवादन नहीं किया था’। एक ओर अटलजी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थे तो दूसरी तरफ मुशर्रफ कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ करा रहे थे।
पाकिस्तान के विश्वासघात से पीएम अटलजी स्तब्ध रह गए थे—
पाकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ ने धीरे-धीरे जम्मू कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी । जनरल मुशर्रफ का मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। मुशर्रफ ने यह घुसपैठ इतने गुपचुप तरीके से करवाई थी कि पाकिस्तानी वायुसेना प्रमुख और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री तक को इसकी खबर बाद में पता चली थी। जब भारत में यह बात जगजाहिर हुई कि कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ हो चुकी है तो अटलजी पाकिस्तान के इस धोखे से ‘स्तब्ध’ थे। यह उनकी ओर से बढ़ाए गए दोस्ती के हाथ में छुरा घोंपने जैसा था। उन्होंने मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक बुलाई और कुछ देर बाद ही भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ का एलान कर दिया।
कारगिल की सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल से पाकिस्तान को खदेड़ कर वहां तिरंगा फहराते भारतीय सैनिकों की तसवीरें आपके जेहन में ताजा होंगी लेकिन ऊपर बैठकर गोली बरसा रहे पाकिस्तानी सैनिकों से इस क्षेत्र को छुड़ाना कोई आसान काम नहीं था। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना और वायुसेना ने अपनी जबरदस्त जांबाजी दिखाई । भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तानी सेना को भारतीय चोटियों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
कारगिल युद्ध में पाक को फिर मुंह की खानी पड़ी अटल जी एक मजबूत नेता के रूप में उभरे—
पाकिस्तानी सैनिक धीरे- धीरे करके कारगिल की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाकर बैठ गए, पाकिस्तानी सैनिक अपने साथ भारी मात्रा में हथियार और खाने पीने का सामान भी लेकर आए थे । वे लंबे युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार थे । भारतीय सेना को पाकिस्तान की इस नापाक साजिश की भनक लगी तो पाक सेना को सबक सिखाने के लिए उसके खिलाफ ऑपरेशन विजय शुरू किया । लद्दाख की ऊंची चोटियों पर लड़े गए कारगिल युद्ध को खत्म हुए आज 22 साल पूरे हो गए हैं ।
यह ऐसा युद्ध था, जिसमें भारतीय सेना ने करीब 18 हजार फुट से ज्यादा ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मनों को मार भगाया था । इस युद्ध में जीत हासिल करने के लिए पाक ने ‘ऑपरेशन बद्र’ शुरू किया था । लेकिन भारत का ‘ऑपरेशन विजय’ पाकिस्तान के ऑपरेशन पर भारी पड़ा । इस युद्ध में पाकिस्तान ने अपने 700 सैनिक गंवा दिए । लगभग 2 माह चले इस युद्ध में भारत के 500 से अधिक जवानों ने अपना बलिदान दिया ।
26 जुलाई को वह दिन आया जिस दिन सेना ने इस ऑपरेशन को पूरा कर लिया। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की भारत ही नहीं विश्व में एक ‘सशक्त मजबूत नेता’ के रूप में छवि उभर कर आई थी ।
कारगिल युद्ध पृष्ठभूमि पर कई बॉलीवुड फिल्में भी बनाई गई—–
कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीर गाथाएं देश के साथ बॉलीवुड पर भी गहरा असर दिखाई दिया था । निर्माता निर्देशकों ने कारगिल पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनाई । फरहान अख्तर ने रितिक रोशन और अमिताभ बच्चन को लेकर एक मूवी बनाई थी। साल 2004 में आई इस फिल्म का नाम ‘लक्ष्य’ था। इसकी कहानी कारगिल युद्ध के फिक्शनल बैकग्राउंड में बनाई गई थी । उसके बाद इस युद्ध पर जेपी दत्ता ने 2003 में ‘एलओसी कारगिल’ बनाई।
इसमें एक से बड़कर एक एक्टर्स शामिल थे। ऐसे ही साल 2003 में रिलीज हुई फिल्म स्टम्प्ड भी कारगिल वॉर पर आधारित है। रवीना टंडन स्टारर इस फिल्म में कारगिल वॉर एक सैनिक की कहानी दिखाई गई है, जो युद्ध में गया है और रवीना ने उसकी पत्नी का किरदार निभाया है। इस फिल्म को प्रोड्यूस भी रवीना टंडन ने ही किया था।
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