बिना लॉक डाउन के जापान ने कॅरोना से कैसे जीती जंग? क्या एक बेहतर लीडरशिप है इसकी वजह या वहां के अनुशाषित लोग?
बिना लॉक डाउन के जापान ने कॅरोना से कैसे जीती जंग? क्या एक बेहतर लीडरशिप है इसकी वजह या वहां के अनुशाषित लोग?
अनुराग व्यास टोक्यो/देहरादून
कोरोना ने दुनियाभर के देशों में बेशक तबाही मचा दी हो, लेकिन 12 करोड़ से ज़्यादा आबादी वाला एक देश ऐसा भी है, जहां कोरोना के कुल एक्टिव मामले अब कुछ हज़ार से ज़्यादा नहीं हैं। उस देश का नाम है जापान! जापान में कुल कोरोना के मामलों की संख्या सिर्फ 17 हज़ार है, और वहां कोरोना से केवल 903 लोगों की ही जान गयी है। जापान ने यह सबकुछ तब कर दिखाया जब देश में कड़ा लॉकडाउन लागू किया ही नहीं गया। जापान में अप्रैल महीने में कोरोना के मामले peak पर पहुंचे थे। तब देश भर में लॉकडाउन कर दिया गया था। हालांकि, अब लॉकडाउन को पूरे तरीके से खोल दिया गया है। यह Japan के बाद अनुशासित और जागरूक लोगों के कारण ही संभव हो पाया है, जिसका पूरी दुनिया के लोगों को अनुसरण करना चाहिए।
बता दें कि एक तरफ जहां दुनिया के देश कोरोना से निपटने के लिए apps और बड़े पैमाने पर टेस्टिंग का सहारा ले रहे हैं, वहीं जापान ने ऐसा कुछ नहीं किया। जापान ने केवल अपने 0.02 प्रतिशत नागरिकों की ही टेस्टिंग की है। आइए अब देखते हैं कि ऐसा क्या कारण है कि जापान में कोरोना इस हद तक काबू में है कि अब देश से आपातकाल लॉकडाउन को हटा दिया गया है।
इसका उत्तर आपको जापान के लोगों के बर्ताव के जरिये आसानी से मिल सकता है। जब देश में लॉकडाउन में ढील दी गयी, तो बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए, लेकिन सब लोग social distancing का बड़ी सख्ती से पालन कर रहे थे। सब के चेहरे पर मास्क भी था। टोक्यो के 45 वर्षीय एक अफसर नाओटो फुरुकी के अनुसार “ सुबह की भीड़ सामान्य से अधिक थी, जो थोड़ा अस्थिर थी। मैं अभी भी थोड़ा चिंतित हूं। महामारी की एक दूसरी लहर दस्तक दे सकती है, इसलिए हमें अभी भी सतर्क रहने की जरूरत है”।
जापान के लोगों का रहन सहन और जीने का तरीका ऐसा है कि कोरोना को फैलने का मौका ही नहीं मिल पाया। जापान के लोग जब भी एक-दूसरे से मिलते हैं तो हाथ मिलाने या फिर गाल पर चुंबन करने की बजाय वे एक दूसरे के सामने झुक कर अभिवादन करते हैं। यही नहीं जापान में बचपन से ही लोगों को बहुत साफ-सफाई रखना सिखाया जाता है। हाथ धोना, डिसइंफेक्ट मिश्रण से गारगल करना और मास्क पहनना उनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं। इन सब के लिए किसी वायरस की आवश्यकता नहीं है। इसी का नतीजा था कि जब फरवरी में यह वायरस फैलने लगा तो पूरे जापान को एंटी-इंफेक्शन मोड में आने के लिए अलग से मेहनत करने की आवश्यकता नहीं पड़ी और न ही सरकार को अलग से यह बताने की आवश्यकता पड़ी कि आप लोग साफ सफाई रखें। दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के दरवाजो पर सैनिटाइजर रख दिए गए और मास्क पहनना सबकी जिम्मेदारी बन गया।
जापान के लोग बहुत सोशल नहीं होते हैं। उन्हें एकांत पसंद है। जापान बहुत ही सघन आबादी वाला देश है और वहां दुनिया में जनसंख्या के अनुपात में सबसे ज्यादा बुजुर्ग लोग रहते हैं। चीन के साथ भी उसका बहुत नजदीकी संपर्क है, जहां से यह वायरस पूरी दुनिया में फैला। जापान के लोगों का शिष्टाचार ही ऐसा है कि उन्होंने कोरोना को फैलने ही नहीं दिया। पूरी दुनिया को अब जापान के लोगों का अनुसरण कर अपने यहाँ कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए काम करना होगा। यही एकमात्र जरिया है जिसके माध्यम से कोरोना के साथ हम अपनी सेहत के साथ-साथ अपने देश की आर्थिक स्थिति का ख्याल रख सकते हैं।
जापान मॉडल’ कितना कारगर?
जिस वक़्त दुनिया में संक्रमण फैलने की शुरुआत हुई थी तभी डायमंड प्रिंसेज़ क्रूज़ शिप में फैले संक्रमण से निपटने में ढिलाई बरतने को लेकर जापान की आलोचना भी हुई थी. बहुत से विशेषज्ञों ने जापान के स्वास्थ्य सिस्टम के फेल होने का अंदेशा जताया था और अनुमान लगाया था कि यहां संक्रमण से लाखों लोगों की जान जा सकती है. लेकिन सरकार ने अपनी रणनीति के तहत काम किया और कोरोना से जीत की घोषणा कर दी है.
प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने करीब डेढ़ महीने तक चले आपातकाल को ख़त्म करने की घोषणा की है.
आपातकाल ख़त्म करने की घोषणा के वक़्त प्रधानमंत्री आबे ने कहा, ”जापान के अपने ख़ास तरीके को अपनाते हुए हमने इस संक्रमण की लहर को लगभग पूरी तरह हरा दिया है.” उन्होंने कहा कि इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए ‘जापान मॉडल’ काफ़ी कारगर साबित हुआ है.
तो अब सवाल उठता है कि जापान मॉडल में ऐसा क्या है जिससे उसने कोरोना संक्रमण पर इतनी जल्दी जीत हासिल कर ली है. और इस महामारी को बड़े स्तर पर फैलने नहीं दिया जबकि अमरीका या रूस जैसे देशों की हालत पस्त हो गई.
निमोनिया से बचाव
एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, जापान में निमोनिया की वजह से बड़ी संख्या में लोग हर साल मारे जाते रहे हैं. साल 2014 से 65 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को निमोनिया की टीका मुफ़्त में लगाने की शुरुआत की गई लेकिन यह निमोनिया के एक प्रकार के लिए था. हालांकि इसे लगवाना ज़रूरी नहीं किया गया. इस टीकाकरण के बाद साल 2017 से निमोनिया वजह से होने वाली मौतों में काफ़ी गिरावट दिखी. साल 2018 में निमोनिया जापान में मौत के आम कारणों की सूची में तीसरे स्थान से खिसककर पांचवें पर पहुंच गया. इसके लिए नई दवाओं और जांच की सुविधाओं को वजह माना जा रहा है.
सांस्कृतिक कारण
जापान में सोशल डिस्टेंसिंग आम ज़िंदगी का हिस्सा है. अमरीका, फ्रांस और इटली की तरह लोग यहां मिलने के लिए या स्वागत में बहुत ज़्यादा करीब नहीं आते. यहां लोग स्वास्थ्य और साफ-सफाई के प्रति काफ़ी जागरूक हैं, मास्क पहनना यहां की आम ज़िंदगी का हिस्सा है. ख़ासकर सर्दियों के मौके पर. इस वजह से उनके लिए यह सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और बाकी दूसरे नियमों का पालन मुश्किल नहीं रहा.
दूसरे देशों के मुकाबले जल्द एक्शन
डायमंड प्रिंसेज़ क्रूज़ शिप में कोरोना संक्रमण से निपटने के दौरान ही जापान को इस महामारी की भयावह स्थिति का अंदाज़ा हो गया था और उसने यहीं से एक्शन की शुरुआत कर दी थी.
बिजनस इनसाइडर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जापान में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग नेटवर्क जनवरी से ही सक्रिय था और यहां शोधकर्ताओं ने इस बात की भी संभावना जताई थी कि यूरोप के मुकाबले एशिया में वायरस का प्रकोप कम होगा. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के दखल और जनता के साझा प्रयासों की वजह से यहां हालात थोड़े अलग हुए.
साभार बीबीसी न्यूज़
लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -
👉 उत्तराखंड टुडे के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ें
👉 उत्तराखंड टुडे के फेसबुक पेज़ को लाइक करें