उत्तराखंड
बूढ़ाकेदार मोटर मार्ग आंदोलन की एक झलक भाग 6
*बूढ़ाकेदार मोटर मार्ग आन्दोलन की एक झलक**
*लेखकः शम्भुशरण रतूड़ी*
(मेरी अप्रकाशित पुस्तक *विद्रोही पथ का राही* के कुछ अंश)
*गातांक से आगे (6) ……………*
अब ! आन्दोलनकारी अपने नेता की अगवानी में टिहरी शहर की ओर कूच कर गये । बेहद रोमांचकारी दृश्य ! सबसे आगे रगस्या के *श्री सगुन्या लालजी* जो पीठ पर उठाये *गुरुकैलापीर* के शक्ति का प्रतीक *नगाड़ा* पीछे से *श्री ऐंठूदास जी* नगाड़े पर दो डंडो (लाँकूड़) के द्वारा पूरी ताकत से भारी भरकम चोटें मारकर ! ऐ बताने का प्रयास कर रहे थे कि यही है *डंके की चोट ! *
पीछे से *श्री जोगदास जी* लगातार चाँदी सेवन निर्मित रणसिंगे की हूंकार से मानो रणभेरी से PWD और प्रशासन को ललकार रहें हों कि हम आ गये ! इनके बाद दमाऊं पर *श्री शेरदासजी* तत्पश्चात *ढोल पर *श्री पूरणदासजी व कलमदासजी* क्रमवार, तथा अन्य कई गावों के ढोलों पर थाप देते वादक गण अपने अपने वाद्ययंत्रो से पूरे रैका-धारमंडल के साथ टिपरी, सारजुला क्षेत्र के गावों (जो अब B पुरम् व नई टिहरी से जाने जा रहें हैं) के साथ अठूर गांवों के लोगों को अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे थे और उन ग्रामीणों को कौतुहल हो रहा था कि आज टिहरी में क्या हो रहा है ? इतनी जनता क्यों कूच कर ही है ? *कणद् गांव की नर नारियां* हाथ हिला हिलाकर आन्दोलनकारीयों का उत्साहवर्धन कर रही थी । यहां पर यह उल्लेखनीय है कि *कणदगांव* में बूढ़ाकेदार के *सर्वश्री अवतारसिंह राणाजी व कमलसिंह राणाजी की बहिन *श्रीमती सुरती देवीजी* की सुसराल थी तो जाहिर था कि बहिन *सुरती देवीजी* के मायके से आये आन्दोलनकारी उनके मैती हुये ! तो संभवतः उन्होंने गांव वालों को बता दिया होगा कि- *जो ढोल-बाजणौं के साथ चल रहे अपार जन समूह मेरे मायके के हैं ……..!* और इसी कारण *कणद् गांव* के नर नारी भिलंगना नदी के पार से *भादू की मगरी* में चल रहे आन्दोलनकारीयों के जत्थे को अपना समर्थन व आशीर्वाद दे रहे थे ।
*PWD मुर्दाबाद, टिहरी प्रशासन हाय ! हाय ! !, अफसरशाही मुर्दाबाद, लालफीता शाही नहीं चलेगी ! नहीं चलेगी ! ! जैसे गगनभेदी नारों से *मोतीबाग* होते हुये PWD प्रांगण में पहुँच गये ! लेकिन वहाँ का नजारा कुछ और ही था । वहाँ के आसपास जैसे कोर्ट रोड, प्रदर्शनी मैदान, छात्रावास, घंटाघर वाली रोड अर्थात चारों तरफ PAC के लंबे चौड़े जवानों ने संगीनो के साथ PWD के कार्यलय को घेर दिया । और प्रशासन ने दूसरे शहरों से अतिरिक्त पुलिसफोर्स मंगाकर टिहरी शहर में चप्पे चप्पे पर पुलिस का पहरा लगा दिया । या यूं समझिये कि टिहरी शहर को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया । पर कहते हैं *ख्वाब जिसके बुलन्द होते हैं , वह खुद में इन्कालाब होते हैं* अर्थात इस घोर डरावनी व्यवस्था के बाबजूद आन्दोलनकारीयों में कोई डर का भाव ही नहीं था ! इस प्रकार की व्यवस्था का का तानाबाना प्रशासन ने बुना था कि, शायद भोले-भाले ग्रामीण पुलिस की डर से दुबक जायेंगे लेकिन छिछोरी हरकत वाले प्रशासन को शायद यह मालूम नहीं था कि जो ग्रामीण हर वक्त *बाघों-रीखों व खतरनाक जंगली जानवरों* के साथ हर समय अपने व अपने मवेशियों की सुरक्षा में तत्पर रहते हों उन्हें संगीनो से क्या डरना था !
बहराल ! आन्दोलनकारीयों का जत्था PWD प्रांगण के अलावा आसपास के जगहों पर एकत्रित हो गये । नारों की गूंज के साथ वादकों ने अपने अपने वाद्ययत्रों से से जो *शबद* बजाये उसे प्रशासन सहित PWD के आला अफसरों के *जुकड़े* उठ गये ! और खासकर आधिशाषी अभियंता *J P शर्मा* का ! क्योंकि ज्यादातर नारे J P शर्मा मुर्दाबाद के नारे लग रहे थे ।और कुछ उत्साही नौजवान आन्दोलनकारी नये नये नारे गढ़ रहे थे । जैसे- *बीड़ी में तम्बाकू है ! PWD डाकू है ! हमारे गांव में शोर है JP शर्मा चोर है! !*
एक खास बात – अधिशाषी अभियंता का बंगला PWD कार्यलय से नजदीक था अर्थात वहां से कार्यलय प्रांगण लगभग साफ नज़र आता था । हां तो *JP शर्मा ने अपने मंकी नाम के अर्दली से कहा कि मुझे प्रांगण का वह दृश्य दिखावो जहाँ आन्दोलनकारी एकत्रित हैं* अर्दली ने हुक्म की तामील की और कार्यलय तरफ वाली खिड़की का पर्दा हटाते और खिड़की खोलते हुये बोला *लीजिये साहब देखो …. लेकिन JP साहब के दुर्भाग्य से उनकी पहली नजर *नगाड़े* पर पड़ी ! जिसे पीठ पर उठाये पीछे से एक आदिमी भारी भारी चोटें मार रहा है और बेहद कर्कश आवाज निकल रही है ! तो इन्जिनियर साहब ने समझा कि पीछे वाला व्यक्ति आगे वाले की पीठ पर *वार* कर रहा है और जो ध्वनि निकल रही है वह उस व्यक्ति की है जिसकी पीठ पर लगातार *वार* हो रहा है । बस्स इस सीन को देखकर JP साहब की *सिट्टी-पिट्टी* गुम हो गयी ! उनको इतना डरावना दृश्य शायद पहली बार देखने को मिला ।
प्रांगण में संचालन का मोर्चा खुद *बलबीरसिंह नेगी* ने संभाला ज्यादा भाषण बाजी नही हुयी ।
सिर्फ एक ही मांग थी कि -*PWD व प्रशासन कके आला अधिकारी यहाँ पर आयें और वार्ता करें और जो बातचीत हो वह जनता का सामने साफ साफ शब्दों में कहें* अर्थात सब पारदर्शी हो ! इस पर मध्यस्था की कांग्रेस के आला नेता *सरदार प्रेमसिंह जी* ने । उनकी इच्छा थी कि वार्ता मोतीबाग स्थित अधिशाषी अभियन्ता के बंगले में हो जिसमें – *बलबीरसिंह नेगी के साथ 2-3 आन्दोलनकारी नेता* व उस तरफ से *D.M, S.D.M. तहसिलदार इत्यादि एवं PWD से E.E, A.E, व 4-5 J.E* लेकिन *बलबीरसिंह नेगी* ने सिरे से उनकी यह मांग ठुकरा दी कि जो भी वार्ता होगी वह- *पारदर्शी होगी आन्दोलनकारीयों समक्ष होगी तथा PWD के खुले प्रांगण में होगी*
जब नेगीजी के इस संदेश को लेकर *सरदार प्रेमसिंह* A.E. के बंगले पर पहुंचे जहाँ PWD सहित प्रशासन के आला अधिकारी इन्तजारी में बैठे थे और संदेश दिया ! और यह भी कहा कि *D.M. साहब ! वह बलबीरसिंह नेगी है ! ! जिसे मैं छात्र जीवन के साथ तब से खासा परिचित हूं जब तत्कालीन दरोगा ने एक बीड़ी बेचने वाले के साथ मामुली झगड़े में गोलीकांड करवा दिया था ! जिसमें *श्रवण* नाम का नाई मारा गया था और इसी *बलबीरसिंह नेगी* के गांव बूढ़ाकेदार के एक निहत्था छात्र *आवतारसिंह राणा* घायल हुआ था ! तब इसी छोकरे ने रातभर छात्रावासों में जाकर इस गोलीकांड के खिलाफ छात्र-छात्राओं को लामबंद किया था । वह एक जिद्दी किस्म का आदिमी है ! अतः भलाई इसी में है कि सभी लोग PWD कार्यलय चलें और बातचीत कर मसले का हल करें ।
(पाठकों ! इस गोलीकांड का विषय अलग है । जिस पर मैं कभी विस्तृत वर्णन करुंगा । यह उल्लेख करना यहां पर प्रसांगिक है । क्योंकि *सरदार प्रेमसिंह* ने लगभग इसी अंदाज में प्रशासन के आला अधिकारीयों से बात की ।)
जारी …..
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