उत्तराखंड
नमन: आज के दिन शुरू हुआ था अनूठा आंदोलन, जिसने पहाड़ की नारी को दिलाया दुनिया में सम्मान….
उत्तराखंड: उत्तराखंड की नारी शक्ति का नाम दुनियाभर में सम्मान से लिया लिया जाता है। पहाड़ में कई वीर नारी हुई हैं जो अपने पहाड़ के लिए सबसे लड़ी ओर आगे बढ़ी। हमारे पूर्वज हमेशा से ही जल, जीवन ,ज़मीन और जंगल की रक्षा के लिए सबसे आगे खड़े रहे हैं। पहाड़ की नारियों ने समाज और संस्कृति को सहेजने के लिए आन्दोलन तक कर डाले थे। आज हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड का मान, सम्मान, प्रकृति की बेटी गौरा देवी की। उत्तराखंड की मातृशक्ति ने वो कार्य किया जिसके लिए पूरी दुनिया उनको सलाम करती और उनकी पहल को सर्वोपरि मानती है। गोरा देवी ने जो आंदोलन शुरू किया था उसके बाद वह आंदोलन पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था। 1974 में आज ही के दिन शुरू हुआ था दुनिया का सबसे अनूठा आंदोलन जिसको नाम दिया गया चिपको आंदोलन। चिपको आन्दोलन की जननी गौरा देवी का जन्म 1925 में उत्तराखंड के लाता गांव चमोली में हुआ था। उस वक़्त गांव में काफी पेड़-पौधे थे जो कि पूरे क्षेत्र को घेरे हुए थे। इनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में मेहरबान सिंह के साथ हो गई थी, जो कि नज़दीकी गांव रैणी के निवासी थे। मेहरबान सिंह जो कि एक किसान थे और भेड़ पालन और उनकी ऊन का व्यापार किया करते थे। शादी के 10 वर्ष उपरांत ही मेहरबान की मृत्यु हो जाने के बाद गौरा देवी को अपने बच्चे का लालन-पालन करने में काफी दिक्कतें आई। कुछ समय बाद गौरा देवी महिला मण्डल की अध्यक्ष भी बनी। उस दौरान अलाकांडा में ठेकेदारों और जंगलात द्वारा अभियान चलाते हुए 2500 देवदार वृक्षों को काटने के लिए चिन्हित किया गया था। लेकिन गौरा देवी ने इनका विरोध किया और पेड़ों की रक्षा करने का अभियान चलाया। जब ठेकेदार और जंगलात द्वारा पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही थी। तब बताया जाता है कि गांव के सभी पुरुष किसी वजह से गांव से बाहर गए थे। इसके बाद भी गोपेश्वर में महिलाओं द्वारा एक रैली का आयोजन किया गया, जिसका नेतृत्व गौरा देवी ने किया था। पहाड़ की एक सीधी साधी सी नारी अब शक्ति का रूप ले चुकी थी। गौरा देवी ने सभी महिलाओं में नारी शक्ति की भावना को जागृत करने का काम किया। यहां से एक रिवॉल्यूशन का जन्म हो गया था। पेड़ों को बचाने के लिए सभी महिलाएं पेड़ों से चिपक गयी। महिलाओं को श्रमिकों ने जान से मारने की धमकी दी, लेकिन मजाल है कि पहाड़ की नारी शक्ति पर एक खंरोच भी आई हो। शर्म की बात तो तब हुई जब श्रमिकों द्वारा महिलाओं पर थूका गया। लेकिन पहाड़ की महिलाएं किसी भी कीमत पर अपने पेड़ों को कटने नहीं देना चाहती थी। आखिर में हार कर ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी। पेड़ों को बचाने के लिए उनपर चिपकने की वजह से इस आन्दोलन का नाम “चिपको आन्दोलन” पड़ा। पर्यावरण के प्रति अतुलनीय प्रेम का प्रदर्शन करने के लिए गौरा देवी ने ऐतिहासिक काम किया था। पर्यावरण की रक्षा के लिये अपनी जान को भी उन्होंने ताक पर रख दिया था। गौरा देवी के इस काम ने उन्हें रैंणी गांव की गौरा देवी से “चिपको वूमेन फ्राम इण्डिया” बना दिया। ये साबित हो गया कि पहाड़ की महिलाएं संगठित होकर किसी भी कार्य को सफल बना सकती हैं | गौरा देवी को 1986 में पहला वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया था। गोरा देवी ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भाईयों ये जंगल हमारे माता का घर जैसा है यहां से हमें फल ,फूल ,सब्जियां मिलती हैं अगर यहां के पेड़-पौधे काटोगे तो निश्चित ही बाढ़ आएगी। गौरा देवी अपने जीवन काल में कभी विद्यालय नहीं जा सकी परंतु उन्होंने अपनी सोच से पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था। चिपको वूमन के नाम से जाने वाली गौरा देवी का निधन 66 वर्ष की उम्र में 04 जुलाई 1991 में हो गया था। चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी को देश प्रदेश सहित पूरा विश्व युगों युगों तक याद रखेगा। कोई सोच भी नहीं सकता था कि इस एक आंदोलन की वजह से उत्तराखंड की नारी शक्ति का नाम दुनियाभर में सम्मान से लिया जाएगा। नमन इस नारी शक्ति को।
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