उत्तराखंड
2 अक्टूबर: उत्तराखण्ड में मिली थी राष्ट्रपिता को महात्मा की उपाधि, पहली बार आये थे गुरुकुल
देहरादून। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (बापू) को हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी और इसके संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद से गहरा लगाव था। वह यंहा पहली बार छह अप्रैल 1915 को आए और स्वामी श्रद्धानंद से राष्ट्रीय शिक्षा पर चर्चा की थी। यंहा के ब्रह्मचारियों ने महात्मा गांधी की सहायता के लिए श्रमदान कर 1500 रुपये दक्षिणी अफ्रीका के लिये भी भिजवाए थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के आधार,,,यही नहीं गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को यंही पर पहली बार महात्मा की उपाधि से अलंकृत किया था।
1915 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे, तब हरिद्वार में आयोजित कुंभ के एक बांध के निर्माण में श्रमदान कर गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने पैसे इकट्ठे किए।
यह पैसे स्वामी श्रद्धानंद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सहायता के लिए दक्षिण अफ्रीका भिजवाए थे। इससे प्रभावित होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पांच अप्रैल 1915 को हरिद्वार आए।
छह अप्रैल को नीलधारा स्थित गुरुकुल कांगड़ी पहुंचने पर स्वामी श्रद्धानंद और गुरुकुल कर्मचारियों ने भव्य स्वागत किया था।इसके बाद महात्मा गांधी और स्वामी श्रद्धानंद का गहरा संबंध बन गया।
उसके बाद महात्मा गांधी मार्च 1916 में फिर गुरुकुल में आए और स्वामी श्रद्धानंद से कई राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की।
10 साल बाद मार्च 1926 को महात्मा गांधी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के रजत जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे। महात्मा गांधी और गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद राष्ट्रीय मुद्दों पर पत्राचार से चर्चा भी की।
उनके कई पत्र आज भी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संग्रहालय में संरक्षित किए गए हैं।
गुरुकुल के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को पहली बार महात्मा कहकर संबोधित किया था।
इसके बाद मोहन दास कर्मचंद गांधी को विधिवत रूप से महात्मा की उपाधि से अलंकृत भी किया गया।
साभार गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार
लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -
👉 उत्तराखंड टुडे के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ें
👉 उत्तराखंड टुडे के फेसबुक पेज़ को लाइक करें