रुद्रप्रयाग
सौन्दर्य: प्रकृति ने इस बुग्याल को दुल्हन की तरह सजाया है, यहां वन देवियां अदृश्य रूप में करती हैं नृत्य… पढ़े..
ऊखीमठ। केदार घाटी: मध्य हिमालय गढ़वाल पुरातन काल से देवी-देवताओं, ऋषिमुनियों और शैलानियों की प्रिय स्थली रही है। पवित्र नदियों का नैहर हिमालय प्राचीनकाल से सभी को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। पौराणिक आख्यानों और स्मृतियों के अनुसार मानव सभ्यता का उद्भव सर्वप्रथम इसी भूखण्ड में हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जितना पुराना मै हूँ उतना ही पुराना केदारखण्ड है। इससे स्पष्ट है कि गढ़वाल हिमालय अनादिकाल से आध्यात्म प्रधान क्षेत्र रहा है। गढ़वाल हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्याल अपनी सुन्दरता के लिए विश्व विख्यात है इन बुग्यालों में आज भी ऐडी़ आछरी, वन देवियों अदृश्य रूप में नृत्य करती है। केदार घाटी के पर्यटक गाँव त्यूडी के ऊपरी हिस्से में बसा मोठ बुग्याल को प्रकृति के अदभुत नजारों को अपने आंचल में समेटे हुए है, प्रकृति के इस अनमोल खजाने से रुबरु होने के लिए इस भूभाग को पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने से त्यूडी – थौला – नैल तालाब – डोडर – जोड़ खर्क – मोठ बुग्याल – अंगरताल के भूभाग को विश्व मानचित्र पर बढावा मिलने से स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा हो सकता है। प्रकृति जब शरद ऋतु व बसन्त ऋतु में अपने यौवन का नव श्रृंगार करती है तो ऐसा आभास होता है कि इन्द्र की परियाँ साक्षात मोठ बुग्याल में विचरण करने के लिए उतर आई हो, इसलिए इन दो ऋतुओं में त्यूडी – मोठ बुग्याल के मध्य के भूभाग में पर्दापण करने से स्वर्ग के समान आनन्द की अनुभूति होती है। मोठ बुग्याल के चारों ओर फैले भूभाग में जब प्रकृति प्रेमी पहुंचता है तो वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारने से मानस पटल पर वीरों जैसा शौर्य व पराक्रम, साधकों जैसा तप, ऋर्षियो जैसा तत्वज्ञान व आत्मज्ञान, संतो जैसी सरलता, योगियों जैसी स्थिरप्रज्ञता, बच्चों जैसी मुस्कान, मां जैसी कोमलता व वात्सल्य पिता जैसी हितैषिता की भावनाओं का उदय होता है। बेपनाह खूबसूरती के लिए विख्यात मोठ बुग्याल समुन्द्र तल से लगभग 8 हजार फीट व केदार घाटी के पर्यटक गाँव त्यूडी से दस किमी की दूरी पर स्थित मोठ बुग्याल को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से बेहतरीन तरीके से सजाया है। ऊंचे पर्वत, मनोहर वन प्रान्त, सघन वृक्षों की झाडियों तथा फूलों के अलंकरणों द्वारा हिमालय के भूभाग में मौठ बुग्याल को प्रकृति ने अत्यन्त मनोरम रुप से संजोया हुआ है। हिमालय के निवासी और प्रकृति के परम उपासक महाकवि कालिदास ने अपनी जन्मभूमि स्मृति को बुग्यालों के दर्शन में पर्वत शिखरों का सान्ध्य और प्रभात कालीन सजीव वर्णन मोठ बुग्याल की सुन्दरता पर सटीक बैठता है। मोठ बुग्याल के पर्वत शिखरों में चन्द्रमा का अस्त और सूर्य के अरूणोदय का प्रकाश एक ही समय में तेजोद्वय का अस्त एवं उदय मानो किसी अवस्था विशेष में ईश्वरीय नियम बता रहें हो। मोठ बुग्याल के सुरम्य मखमली बुग्यालों में एक ओर सूर्यास्त की लालि का मखमली हरी घास के साथ सुहावनी लगती है तो दूसरी ओर सान्ध्यकालीन कालिमा का सौन्दर्य मन को मोह लेता है। मोठ बुग्याल से केदारनाथ, सुमेरु, चौखम्बा, विशोणीताल, मनणामाई तीर्थ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, पवालीकांठा व घंघासू बांगर तथा सैकड़ों गहरी फीट की खाईयो के दुर्लभ क्षणो को कैमरे में कैद करना इतना आसान नहीं, क्योंकि मोठ बुग्याल पहुंचने पर मौसम का साफ होकर प्रकृति की अनुपम छटा नसीब वालो को ही प्राप्त होती है! स्थानीय पशुपालकों व भेड़ पालको के अनुसार आज भी देव कन्यायें प्रकृति के सौन्दर्य का आनन्द लेकर यहाँ के तालाबों में जल विहार में स्नान करती है तथा वन देवियों के संगीत का आनन्द लेती है। केदार घाटी के पर्यटक गाँव त्यूडी के शीर्ष पर विराजमान पर्यटक स्थल मोठ बुग्याल के साथ नैल तालाब व अंगर तालाब को सरोवर नगरी नैनीताल की नैनी झील के समान है। हिमाच्छादित चमकीले धवल गिरि श्रृंगों के सान्निध् में स्थित मोठ बुग्याल शोभा सम्पन्न शब्दार्थ की प्रतीति वाले विलसितये बुग्याल जब दृष्टि गोचर होते हैं तो आंखें चकाचौंध हो जाती है, मोठ बुग्यालों में गन्धर्वों के संगीताश्रम और अप्सराओं के नृत्य निकेतन प्राचीन काल में थे। देवताओं के लम्बे चौड़े बन बिहार स्थल तथा सुन्दर तालाब, अनेक प्रकार के पुष्प मन को लुभाते है। त्यूडी गाँव से डोडर के मध्य का भूभाग चारों तरफ अपार वन सम्पदा से लदा भूभाग, भंवरों का मधुर गुंजन, कौसी, मुन्याल, पक्षियों के उड़ते स्वर्णिम पंखों के दर्शन अत्यंत प्यारे लगते हैं। मोठ बुग्याल के चारो तरफ वनौषधियो के भण्डार भरे हुए है। कस्तूरी मृग, बाराह, थार, आदि वन्य जन्तुओं के विचरण से मोठ बुग्याल के वैभव कि वृद्धि कर चार चांद लगा देते है। प्रकृति का रसिक जब मोठ बुग्याल की शान्त वादियों में पहुंचता है तो मोह माया का त्याग कर परम पिता परमेश्वर की भक्ति में तल्लीन होकर जीवन के दुख दर्दो को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाता है। कनिष्ठ प्रमुख शैलेन्द्र कोटवाल जिला पंचायत सदस्य बबीता सजवाण, क्षेत्र पंचायत सदस्य रजनी राणा बताते है कि मोठ बुग्याल के प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रकृति ने नव नवेली दुल्हन की तरह सजाया व संवारा है इसलिए इस बुग्याल में पल भर बैठने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है। मनोज सेमवाल, दीपक धिरवाण, महादेव धिरवाण बताते है कि मोठ बुग्याल में बार – बार जाने के लिए मन लालायित बना रहता है। शिशुपाल राणा, रघुवीर राणा, राकेश सेमवाल, मुकेश सेमवाल बचन सेमवाल, टुपरिया सेमवाल बताते है कि मोठ बुग्याल के ऊपरी हिस्से में पत्थर की विशाल शिला केदार शिला के नाम से विख्यात है तथा शिला की पूजा करने से मनुष्य को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। अनिल रावत, चन्द्र सिंह रावत, गुलाब सिंह रावत बलराम सिंह रावत बताते है कि त्यूडी गाँव से लगभग सात किमी दूर सतगुडू स्थान को भी प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। कुलदीप सेमवाल, चैत सिंह सेमवाल, सुरेन्द्र सेमवाल, विजेन्द्र सिंह रावत, सुरेन्द्र रावत बताते है कि बरसात के समय मोठ बुग्याल हरियाली छाने से वहां के प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लग जाते है इसलिए स्थानीय प्रकृति प्रेमियों का आवागमन बरसात के समय अधिक होता है। दिलवर सिंह धिरवाण, गजपाल सेमवाल, कृपाल सिंह धिरवाण, इन्द्र सिंह धिरवाण, दयाल सिंह रावत, अब्बल सिंह रावत का कहना है कि यदि प्रदेश सरकार व पर्यटन विभाग बलभद्र मन्दिर त्यूडी को तीर्थाटन व त्यूडी – मोठ बुग्याल के भूभाग को पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने की पहल करते है तो स्थानीय तीर्थाटन, पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा मिलने के साथ होम स्टे योजना का लाभ ग्रामीणों को मिलने के साथ युवाओं के सन्मुख स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होगा।
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