उत्तराखंड
उत्तराखंड में जमीन से जुड़ा ऐसा विवाद जिससे सुप्रीम कोर्ट भी परेशान, 75 साल से अटकी है रजिस्ट्री…।
नैनीताल : उत्तराखंड के हल्द्वानी में एक जमीन का केस खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। 75 साल से चल रहे विवाद से सुप्रीम कोर्ट भी परेशान है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को उत्तराखंड हाईकोर्ट को वापस भेज दिया है और मामले में फिर अच्छी तरह जांच के निर्देश दिए हैं। दरअसल, मामला 1924 का है। जॉन वॉन नामक अंग्रेज ने हलद्वानी में 30 एकड़ जमीन लीज पर ली थी। इसके बाद ये लीज कई लोगों तक पहुंचा। 1947 में वॉन ने मालिकाना हक एक भारतीय को ट्रांसफर कर दिया था। बस यहीं से मामला उलझा और पिछले 75 साल से ये केस अदालत में है।
देश के आजाद होने के बाद वॉन ने जमीन बेच दी। 17 नवंबर 1947 को मनोहर लाल नामक शख्स को इसकी रजिस्ट्री पहले 30 साल के लिए हुई जो बाद में बढ़कर आगे 30 साल के लिए हो सकती थी। लेकिन लैंड डीड में ये लिखा गया था कि बिना नैनीताल कमिश्नर की मंजूरी के ये जमीन नहीं बेची जा सकती है, लेकिन वॉन ने इसे बेचने से पहले इस डीड का उल्लंघन किया। ये जमीन लैंड सीलिंग एक्ट के तहत आती थी और सरकार ने यहां से किरायदारों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। लेकिन इसी दौरान मनोहर लाल के वंशजों ने जमीन की म्यूटेशन प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
इस बीच, मनोहर लाल की बिना किसी वसीयत लिखे मौत हो जाती है। इसी दौरान अधिकारियों ने बिना किसी विज्ञापन और अन्य प्रक्रियाओं का पालन किए इस जमीन की रजिस्ट्री इसके मालिकों को कर दी। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट और बाद में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस जमीन का मालिकाना हक मृतक मनोहर लाल के वंशज को 2007 में देने का आदेश दिया। लेकिन कोर्ट के इस फैसले को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।
इस मामले की जटिलता और मुकदमे के मालिकाना हक को पूरी तरह से जांचने के बाद जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे के माहेश्वरी ने हाईकोर्ट को इस मामले में 100 साल पहले बने कागजात को जांचने को कहा है। अपने फैसले में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम इस मामले से वाकिफ हैं कि ये मामला शीर्ष अदालत में 15 साल से लंबित है। सामान्य परिस्थिति में हम इस पर फैसला दे देते लेकिन उचित रिकॉर्ड के अभाव में इस अचल संपत्ति के मालिकाना हक सामान्य तरीके से आदेश नहीं दे सकते।
हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है सिवा इसके कि हम इसे फिर से हाईकोर्ट को वापस भेज दें शीर्ष अदालत ने कहा कि कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर मिलना जरूरी है। इसलिए हमने इस केस को वापस हाईकोर्ट को भेजने का फैसला किया है ताकि वो पूरी तरीके से जांच-परख कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही राज्य सरकार को 1924 से लेकर अबतक के सभी कागजात पेश करने को कहा है। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्ष को हाईकोर्ट के फैसले तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा है।
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