उत्तराखंड
Suicide: बच्चे लगा रहे मौत को गले, कारणों का पता नहीं, प्रदेश में बढ़ता जा रहा किशोरों की मौत का आंकड़ा
Suicide
देहरादून। बच्चे जो अभी सामाजिक स्तर पर प्रवेश ही कर रहे होते हैं। आखिर किन कारणों से वह मौत को गले लगा रहे हैं। कुमांऊ मंडल में पिछले 24 घण्टे में दो छात्रों ने मौत का रास्ता चुन लिया। नाबालिग बच्चों के इस वाकये से माता पिता सकते में हैं। क्या बच्चे डांट डपट से इतने क्षुब्ध हो रहे हैं।
मनो चिकित्सक भी अत्यधिक तनाव या अवसाद को आत्महत्या का कारण मान रहे हैं, दरअसल, बीते 24 घण्टों में हल्द्वानी के कुंवरपुर निवासी सातवीं क्लास के छात्र पंकज आर्य (14) पुत्र रमेश आर्य औऱ 10वी कक्षा की 19 वर्षीय छात्रा राधिका पुत्री ललता प्रसाद की विषपान से मौत हो गई।
पंकज अपने जान पहचान वालों से कुछ पैसे उधार ले आया था। जिस पर परिजनों ने उसे डांट डपट दिया था। जबकि राधिका की मौत भी संदिग्ध अवस्था विषाक्त खाने से हो गई।
दोनों की खुदकुशी के रहस्य अभी खुल नही पाए है। जबकि पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है। सवाल यह है कि सामाजिक स्तर पर प्रवेश करने वाले बच्चे आखिर इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं।
क्या मा बाप की डांट को अपना अपमान समझकर इस तरह का कदम उठा लिया गया, कई अन सुलझे सवाल दोनों की जिंदगी के साथ दफन होते नजर आ रहे हैं।
इससे पूर्व भी हो चुकी खुदकुशी
15 जून 2020 को हाईकोर्ट में कार्यरत एक कर्मचारी के अल्मोड़ा निवासी 13 वर्षीय बालक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी, वंही 17 अप्रैल को नैनीताल के स्टाफ हाउस मल्लीताल क्षेत्र में 15 वर्षीय किशोर का शव भी पेड़ से लटका हुआ मिला, 1 मार्च 2020 को रुद्रपुर क्षेत्र में पिता की डांट से नाराज 15 वर्षीय एक युवक ने फांसी लगा मौत को गले लगा दिया।
जबकि राजधानी देहरादून में 23 फरवरी 2020 को बसन्त विहार क्षेत्र में टीवी के मनपसंद सीरियल देखने को लेकर नाराज 8 वर्ष की छात्रा ने फांसी लगा दी, यही नहीं 17 अप्रैल को भी बसंत विहार क्षेत्र में पिता की लाइसेंसी पिस्टल से 9वी के छात्र ने खुद पर फायर झोंकर मौत को गले लगा दिया।
ऐसे कई अनगिनत नाबालिग,किशोरावस्था के आत्महत्या के मामले सामने देखने को मिले हैं जिनके कारणों का स्पष्ट पता नही लग पाया है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक डॉ नवीन निश्चल बताते हैं कि शिक्षक, अभिभावक, सहपाठियों द्वारा किसी बात को लेकर अत्यधिक दवाब देना भी बच्चों को तनाव में ला सकता हैं।

इसके अलावा,जाती धर्म को लेकर शोषण जाती सूचक शब्द बच्चों की मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालते हैं जिससे वह अपने आपको हीन भावना से देखने लगते हैं, यही नहीं वह अपने आपको अपमानित भी समझने लगते हैं।
जबकि परिवारिक वातावरण, अधिक चिंतन, शैक्षिक प्रदर्शन आदि जगहों पर मानसिक दवाब बनना भी बच्चों में आत्महत्या का कारण बन सकता है। उन्होंने बताया कि अभिभावक, शिक्षकों को बच्चों की मानसिक स्थिति को समय समय पर परखना जरूरी है।
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