उत्तराखंड
सवाल: भूकम्प ऐप लॉन्च होते ही उठने लगे सवाल, क्या हैं सवाल, पढ़िए….
देहरादून: अब आपके मोबाईल पर आपको भूकंप के आने से पहले ही खबर मिल सकेगी। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस एप से आप सुरक्षित स्थान पर पहुंच सकेगें। जिससे बचाव कार्य आसान हो जाएगा। सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को ही सचिवालय में मोबाइल एप्लीकेशन ‘उत्तराखंड भूकंप अलर्ट’ एप लांच किया। जिसके साथ ही उत्तराखंड भूकंप की पूर्व चेतावनी देने संबंधी एप बनाने वाला पहला राज्य बन गया है। लेकिन इसकी लॉचिंग के साथ ही इस एप पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए है। वैज्ञानिकों ने इस एप को लेकर सवाल उठाएं है । इस सिस्टम को कामयाब नहीं बताया जा रहा है क्योंकि इससे लोगों को जान माल बचाने के लिए बहुत ही कम समय मिलेगा।
आपको बता दें कि आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम ने उत्तराखंड भूकंप अलर्ट एप बनाया है, दावा किया गया है कि ये एप 5.5 तीव्रता या उससे अधिक का भूकंप आने पर अलर्ट करेगा। इस एप से लोगों को सतर्क करने के लिए कवायद शुरू हो गई है। एप एंड्रॉयड और iOS दोनों प्लेटफॉर्म पर डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। सीएम धामी कई घोषणाएं की है। ये एप भूकंप से पहले लोगों को अलर्ट मैसेज भेजेगा। यह भूकंप के दौरान फंसे लोगों की लोकेशन का पता लगाने में भी मदद करेगा और संबंधित अधिकारियों को भी अलर्ट भेज देगा। लेकिन वहीं भूकंप के पूर्वानुमान पर सवाल खड़े हो रहे है। वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से जोन 4 और जोन 5 में आता है। लिहाजा अगर जोन 4 की बात करें तो पूरे विश्व में किसी भी देश में अभी तक भूकंप के पूर्वानुमान की प्रणाली नहीं है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार के अर्ली वार्निंग सिस्टम एप्लीकेशन भूकंप से निकलने वाली वेब कितने सेकेंड में लोगों तक पहुंचेगी, उसकी जानकारी देगा। इस सिस्टम से जनता को सतर्क नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस सिस्टम से जनता को बहुत कम समय मिलेगा। बताया जा रहा है कि लोगों को भूकंप की जानकारी महज 15 से 20 सेकेंड पहले ही मिलेंगी। क्योंकि,भूकंप की तरंगें 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से आगे बढ़ती हैं। ऐसे में लोगों के पास जान-माल बचाने के लिए बेहद कम समय है। अगर प्रदेश में चल रहे बड़े प्रोजेक्ट, बिल्डिंग आदि को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो ऐसे में वहां पर भूकंप के दृष्टिगत ऑटो सिस्टम लगाया जाए। क्योंकि इस एक एप मात्र से जान-माल के नुकसान को कम नहीं किया जा सकता। ऐसे में जो इंपॉर्टेंट प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उनको भूकंप से बचाने के लिए ऑटो सिस्टम लगाए जाने की जरूरत है।
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