उत्तराखंड
बूढाकेदार मोटर मार्ग आंदोलन की एक झलक भाग 2
*बूढ़ाकेदार मोटर मार्ग आन्दोलन की एक झलक ।*
*लेखकः शम्भुशरण रतूड़ी*
भाग 2
(मेरी अप्रकाशित पुस्तक *विद्रोही पथ का राही* के कुछ अंश)
गातांक से (2) ……………।
किसान सम्मेलन समाप्ति के बाद हम लोग टिहरी (पुरानी) लौट गये । मार्च (1977) नजदीक आ गया पर मोटर मार्ग का काम अपनी कछुवा चाल ही चल रहा था और श्री नेगीजी द्वारा PWD को बार बार याद दिलाने पर उनकी कानों में जूँ नही रेंग रही थी । नेगीजी आगे की रणनीति बना रहे थे कि एक घटना हो गयी ! तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने आम चुनाव की घोषणा कर दी । जिसे 16 मार्च से 20 मार्च तक संपन्न होना था । तो लाजमी था कि बूढ़ाकेदार मोटर मार्ग आन्दोलन के सूत्रधार नेगीजी चुनावी समर में व्यस्त हो गये । वह चुनाव हर भारतीय के लिये बेहद रोमांचकारी था और मेरे लिये भी !
बहराल ! जनता पार्टी की सरकार बनी । तो लगा कि अफसरशाही सुधरेगी पर वह तो और भी *लमसट्ट* हो गयी । अर्थात मोटर मार्ग का कार्य जस का तस पड़ा हुआ था ।
अब सिर्फ एक ही रास्ता था *कानूनी नोटिस* ! और नेगीजी ने PWD को 90 दिन का नोटिस दे दिया । जिसका शीर्षक था *नापाक इरादों से कह दो एक चिंगारी है जो शोला बनी जा रही है* …. *कि 90 दिन के अंदर चमियाला- बूढ़ाकेदार मोटरमार्ग का निर्माण नहीं हुआ तो मजबूरन क्षेत्र की जनता (थातीकठूड़, बासर) की टिहरी आकर PWD का घेराव करेगी जिसकी पूरी जुम्मेदारी प्रशासन और विभाग की होगी ।
इस पर भी मोटे *जुकड़े* के अधिकारीयों को कोई फरक नहीं पड़ा ! अर्थात सड़क पर 1मीटर की भी खुदाई नहीं हुई । अब नेगीजी का गुस्सा सातवें आसमान पर था । अपनी वकालात को लगभग उन्होंने छोड़ दिया और आन्दोलन की तैयारी में जुट गये । और 18 जनवरी 1977 का दिन आन्दोलन के लिये मुकरर् हो गया ! हम दोनो आन्दोलन की तैयारी के लिये टिहरी से क्षेत्र की ओर चल पड़े ।
पर इससे पहले एक घटना हो गयी ! कि प्रशासन और PWD को भनक लग गयी कि बलबीरसिंह नेगी अब पीछे हटने वाला नही है वह एक जिद्दी किस्म का नेता है अर्थात जो ठान लेता है वह करके दिखाता है । तो तत्कालीन अधिशाषी अभियन्ता J.P.शर्मा ने अपने गुर्गों से नेगीजी को पटाने की नाकाम कोशिश की । जिसमें एक किस्सा यह कि एक शाम टिहरी बाजार की पूरी बिजली बन्द हो गयी ! इसी बीच PWD के 1 सहायक अभियन्ता और दो अवर अभियन्ता एक काली अटैची के साथ (जो उस समय J.E लोंगों के पास अक्सर रहती थी) नेगीजी के निवास पर पहुँचते हैं, और अटैची खोलते हैं जो करारे नोटों से भरी थी ! और कहते हैं कि- सर् यह छोटा सा तोहफा हमारी ओर से है, पर आपना आन्दोलन वापिस ले लो ! पर जिसके रग रग में ईमानदारी का लहु संचारित हो खुद्दारी बलबीरसिंह नेगी ने उन्हें हड़काते हुये बेहद गुस्से में कहा कि इसी वक्त इज्जतदारी से मेरे निवास से निकल जाइये वरना मेरे से बुरा कोई नहीं होगा ….. और जन्मजात घूसखोरी अफसर अंधेरे में उल्टे पांव वहां से भाग गये । संयोग देखिये ! टिहरी शहर में बिजली गायब (यह बाद में पता चला कि बिजली जानबूझकर कुछ देर लिये बन्द कर दी गयी थी कि अंधेरे में नेगीजी को खरीदा जाय) और लगभग ठीक उसी समय दोबाटा में मेरे (इन पंक्तियों के लेखक) निवास पर व्हिजिलेन्स के दो अधिकारी आते हैं और कहते हैं कि- बलबीरसिंह नेगी ने अपना आन्दोलन वापिस ले लिया है और वे आज घनशाली चले गये ….. मैं उनकी बातों को सुनकर असमंजस में पड़ गया कि आखिर नेगीजी ने क्यों आन्दोलन वापिस ले लिया ? जरुर कुछ दाल में काला है । कभी कभी दिल कह रहा था कि जरुर नेगीजी ने पैसे खाये और आन्दोलन वापिस लिया पर मेरी अंतरआत्मा की आवाज मुझे झिंझोड़ रही थी कि नहीं ! हरगिज नहीं ! ! बलबीरसिंह नेगी ऐसा कर ही नहीं सकते और इसी कसमाकश में रात गुजरी और सुबह नेगीजी के निवास पहुंचा ।तो नेगीजी ने सामान्य ढंग से पूछा कि तुम तैयार होकर आ गये (क्योंकि हमें उस दिन आन्दोलन की तैयारी के लिये क्षेत्र में जाना था) मैं अवाक् था ! मैनें रात का पूरा किस्सा नेगीजी को बताया कि ऐसे L.I के दो अफसर मेरे निवास पर आये और उन्होंने भी अटैची कांड वाली बात बताई । फिर भी उन्होंने मुझे सचेत किया कि ऐसे कई चातुर्दिक मोड़ आयेंगे पर किंचित मात्र भी विचलित नहीं होना …. और हम चल पड़े क्षेत्र की ओर अर्थात नेगीजी बासर की तरफ और मैं बूढ़ाकेदार की तरफ ।
*शेष कल ……. ।*
किस्से कई रोचक हैं ! टिहरी पहुँचते पहुँचते किन किन बाधाओं से गुजरना पड़ा ……?
लेटेस्ट न्यूज़ अपडेट पाने के लिए -
👉 उत्तराखंड टुडे के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ें
👉 उत्तराखंड टुडे के फेसबुक पेज़ को लाइक करें
You must be logged in to post a comment Login