चमोली
Big Breaking: चमोली त्रासदी की वजह आई सामने, इस छात्र ने किया अध्ययन, जानिए…
उत्तराखंड के चमोली जिले में सात फरवरी 2021 की त्रासदी के कारणों का पता लगा लिया गया है। समुद्र तल से करीब 5600 मीटर की ऊंचाई पर 750 मीटर का हैंगिंग ग्लेशियर (लटकते हुए) टूटकर गिरने से यह भयावह हादसा हुआ था।
इस हादसे ने 20 किलोमीटर के क्षेत्र को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। हादसे के समय अधिकतम तापमान तो सामान्य था, लेकिन पिछले 20 वर्ष में न्यूनतम तापमान लगातार बढ़ रहा था। इससे एक हैंगिंग ग्लेशियर में दरार आनी आठ साल पहले ही शुरू हो गई थी। ग्लेशियर टूटने के बाद धौलीगंगा और ऋषिगंगा में भीषण बाढ़ आ गई थी। तपोवन स्थित एनटीपीसी के टनल में गीला मलबा भर गया था। इस हादसे में 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातन छात्र डा. रुपेंद्र सिंह का दावा
यह अहम तथ्य इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के पूर्व छात्र डा. रुपेंद्र सिंह के अध्ययन में सामने आया है। दैनिक जागरण से खास बातचीत के दौरान डा. रुपेंद्र ने बताया कि हादसे के बाद विज्ञानियों के मन में तमाम सवाल उठे थे और उसका उत्तर खोजा जा रहा था। एक सवाल यह था कि आखिर यह घटना फरवरी के सर्द मौसम में क्यों हुई? जबकि इतनी बारिश भी नहीं हुई थी। ऐसी घटनाएं सामान्यत: मानसून आने पर अतिवृष्टि होने से होती है। दूसरी बात यह कि इस घटना में बिना बारिश इतना ज्यादा पानी मलबे में पहले कैसे था।
डा. रुपेंद्र कहते हैैं कि वजह जानने के लिए उन्होंने 20 साल के तापमान, बारिश और घाटी की प्राकृतिक घटनाओं का विश्लेषण किया। मुख्य कारण यह समझ में आया कि न्यूनतम तापमान बढ़ा है। उन्होंने बताया कि न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी से मिट्टी के नीचे की बर्फ भी पिघलने लगी। इससे पकड़ कमजोर हुई और हैंगिंग ग्लेशियर टूटकर नीचे गिरा। ग्लेशियर का इतना बड़ा हिस्सा गिरा कि आसपास के क्षेत्र में भूकंप जैसे झटके महसूस किए गए। जहां यह लाखों टन मलबा गिरा वहां ढलान अधिक थी। हादसे के दो दिन पहले गिरी ताजी बर्फ और ग्लेशियर की बर्फ (दोनों अलग-अलग होती हैं) भी नीचे फिसल गईं। यह पिघलने लगी। मलबा ढलान के रास्ते से तबाही मचाते हुए नीचे पहुंच गया। रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट तथा ग्राउंड वेरिफिकेशन तकनीक से किया गया यह अध्ययन विश्व की प्राकृतिक आपदा की प्रमुख शोधपत्रिका जीओमैटिक्स नेचुरल हाजड्र्ज एंड रिस्क के जनवरी 2022 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
महोबा के रहने वाले हैं डा. रुपेंद्र
मूलत: महोबा में रामनगर निवासी डा. रुपेंद्र ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भूगोल विषय में सत्र 2003-06 में स्नातक की उपाधि ली। फिर 2006-08 में परास्नातक की पढ़ाई के बाद प्रो. आलोक दुबे के मार्गदर्शन में 2009 में रिमोट सेंसिंग की एक साल की पढ़ाई की। इसके बाद लखनऊ में उत्तर प्रदेश रिमोट सेंसिंग सेंटर में विज्ञान और तकनीकी मंत्रालय भारत सरकार और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के ग्लेशियर प्रोजेक्ट में कार्य किया। फिर केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान के प्रो. राजेश कुमार और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अहमदाबाद में अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के डिप्टी डायरेक्टर डा. आइएम बहुगुणा के निर्देशन में ग्लासिओआजी से पीएचडी की। वर्तमान में वह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च अफसर हैं।
टीम में ये भी रहे शामिल
दिल्ली के किरोरी मल कालेज के डा. विजेंद्र कुमार पांडेय, सिक्किम विश्वविद्यालय के डा. राजेश कुमार, केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान के प्रो. राजेश कुमार, कैलिफोर्निया के प्रो. रमेश पी सिंह, आइएमडी से डा. विजय कुमार सोनी, किरोरी मल कालेज से प्रो. अरुण कुमार त्रिपाठी, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ से डा. शेष नवाज अली के अलावा दो शोध भी शामिल रहे।
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