टिहरी गढ़वाल
Tehri News: गुरु कैलापीर के जयकारों से गूंजा बूढाकेदार, भक्तों ने लागई आस्था की दौड़…
पौराणिक तीर्थ धाम बूढ़ाकेदार में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मंगशीर गुरु कैलापीर दीपावली (बग्वाल) मेला महोत्सव की धूम रही। आराध्य देव गुरु कैलापीर देवता की मंगशीर दीपावली ( बग्वाल ) मेला महोत्सव को भव्य रूप से मनाया गया। बुधवार की दोपहर रणसिंगे के साथ ढोल दमाऊं की थाप पर गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर आए। मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में मौजूद भक्त देवता के निशान (झंडा) के साथ पुंडेरा के सेरा पहुंचे।
वहां देवता ने खेतों में ऊपर-नीचे सात चक्कर मारे। साथ ही घनसाली विधायक शक्तिलाल शाह, डीएम मयूर दीक्षित, ब्लॉक प्रमुख वशुमति घणाता ने तीन दिवसीय गुरू केलापीर मेले का उद्घाटन किया। विधायक ने मंदिर निर्माण के लिए विधायक निधि से 10 लाख रुपये देने की घोषणा की। बताया जा रहा है कि इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण ग्रामीणों के देवता के साथ खेतों में दौड़ लगाना है। जिसके लिए बड़ी संख्या में बाहर से भी लोग यहां पहुंचे और इस दौड़ में शामिल हुए।
बता दें कि टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की दीपावली को धूमधाम से साथ मनाया जाता है। गांव से बाहर रहने वाले लोग कार्तिक की दीपावली के बजाय मंगशीर की दीपावली के लिए गांव पहुंचते हैं। ग्रामीण दीपावली मनाने के साथ ही क्षेत्र के ईष्ट देवता गुरु कैलापीर के आशीर्वाद लेने भी गांव पहुंचते हैं। इस दीपावली को मनाने की पीछे यहां का ईष्ट देवता गुरु कैलापीर हैं और उसी के नाम से यहां पर मेला भी आयोजित होता है। इष्ट देव गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर आकर अपनी भक्तों को दर्शन देकर पुडारा के शेरे में दौड़ लगाकर गोरखों के साथ हुए युद्ध की यादों को तरोताजा कर आशीर्वाद देते हैं।
स्थानिय बुजुर्गों के मुताबिक इस दीपावली की परंपरा लगभग 500 वर्ष पुरानी है। मुख्य कारण यह है कि 16वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश महिपाल शाह के समय उत्तराखंड पर गोरखा राजा ने आक्रमण किया था, उस समय गढ़वाल के कई बीर भड, के साथ ही क्षेत्र के प्रमुख आराध्य देव गुरु कैलापीर देवता ने इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजमानी (राजा के माने हुए) गुरु कैलापीर देवता के युद्ध में सक्रिय होते ही टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार एवं उत्तरकाशी जिले के 90 जोला (यानी) 180 गांव के प्रत्येक परिवार के मुखिया युद्ध में कूद पड़े। परिणाम स्वरूप गोरखा राजा को मुंह की खानी पड़ी और गढ़वाल नरेश महिपाल शाह की भारी जीत हुई।
इस जीत पर खुश होकर गढ़वाल नरेश ने गुरु कैलापीर देवता को टिहरी जिले के कुश कल्याण के साथ ही थाती कठूड, एवं उत्तरकाशी जिले के गजडा कठूड, नेल्ड कठूड, क्षेत्र के 180 से अधिक गांव भेंट स्वरूप जागीर में दिए। युद्ध के समय चूंकि दीपावली थी और टिहरी, उत्तरकाशी जिले के इन गांवों के लोग युद्ध में शामिल थे। इसलिए उस समय क्षेत्र में कार्तिक माह की दीपावली नहीं मनाई जा सकी दीपावली के ठीक एक महा बाद गुरु कैलापीर देवता के नेतृत्व में लोग युद्ध जीत कर खुशी-खुशी अपने घर पहुंचे। युद्ध जीतने की खुशी में टिहरी गढ़वाल के बूढ़ाकेदार क्षेत्र एवं जौनपुर, थौलधार, प्रताप नगर के मदन नेगी, उत्तरकाशी जिले के रवाई, गजडा कठूड, नेल्ड कठूड, श्रीनगर के मलेथा और कुमाऊं के कुछ गांव में यह भव्य दीपावली मनाई जाती है। यह परंपरा पिछले 500 वर्षों से चली आ रही है जो आज भी बदस्तूर जारी है। आज भी इन क्षेत्रों के लोग कार्तिक माह की दीपावली को अपने रिश्तेदारों के घर जाकर मानते हैं।
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