देहरादून
हलचल अभी बाकी है: उत्तराखंड की राजनीति अभी भी मुश्किल में, जल्द संभव विधायक दल की बैठक…
देहरादून: राजनीतिक हलचल अभी भी जारी बस पर्दा उठना अभी बाकी है बस देखते रहें क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है। अभी नहीं उठा है तो क्या हुआ उठ जाएगा। ये लाइन हैं फिल्मी… प्रदेश में मुख्यमंत्री के खिलाफ जारी असंतोष को लेकर भाजपा नेतृत्व बहुत ही गंभीर है। इस बात को आप इस अंदाजा से लगा सकते हैं कि पार्टी के संसदीय बोर्ड ने बीते रोज पार्टी उपाध्यक्ष रमन सिंह को बतौर पर्यवेक्षक देहरादून भेजकर स्थिति की जानकारी ली। इस पूरी प्रक्रिया में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि स्थिति बेहद गंभीर है और हालात संभालने के लिए सभी विकल्प खुले हैं। सूत्रों के मुताबित पर्यवेक्षक रमन और प्रभारी दुष्यंत गौतम की उपस्थिति में हुई पार्टी कोरग्रुप बैठक में कई सांसदों, विधायकों और मंत्रियों ने सीएम के खिलाफ मोर्चा खोला है। मुख्यमंत्री की कार्यशैली पर सवाल खड़े हुए और समर्थन में बहुत कम लोग दिखे। बैठक के बाद पर्यवेक्षक ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में स्थिति की गंभीरता से नेतृत्व को अवगत करा दिया है। आपको बता दें कि केंद्र का पर्यवेक्षक भेजने और कोरग्रुप की बैठक बुलाकर राय जानने का फैसला अचानक हुआ। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुछ तो चल रहा है। राज्य के कई नेताओं को दिल्ली से फोन कर बैठक के लिए पहुंचने का निर्देश दिया गया था और दो दर्जन विधायकों को दो-तीन हेलिकॉप्टर के जरिए देहरादून पहुंचाया गया। निशंक को लखनऊ से, दिल्ली आ रहे अजय भट्ट को रास्ते से ही देहरादून वापस भेजा गया, जबकि विजय बहुगुणा को दिल्ली से देहरादून भेजा गया। इस बैठक के लिए गैरसैंण में चल रहे विधानसभा सत्र के दौरान आनन फानन में ध्वनि मत से बजट पारित कराया गया और अनिश्चित काल के लिए स्थगित किया गया। सूत्रों के मुताबिक हालात संभालने के लिए तीन से चार दिन के अंदर विधायक दल की बैठक बुलाए जाने की चर्चा है और विधायक दल की बैठक हुई तो इसका सीधा अर्थ है कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तय है। सीएम पद की रेस में केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सतपाल महाराज और सांसद अनिल बलूनी हैं। हालांकि चुनाव नजदीक होने के कारण नेतृत्व मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति नहीं आने देने का प्रयास भी कर सकता है। प्रदेश की जनता के बीच चर्चा यही है कि नेतृत्व के पास पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड में पार्टी के अंदर बगावत का झंडा बुलंद होने की आशंका थी। इसलिए संसदीय बोर्ड ने आनन फानन में पर्यवेक्षक भेजकर स्थिति संभालने की रणनीति बनाई। बताते हैं कि कोरग्रुप की बैठक के बाद पार्टी के कई विधायक शनिवार को ही दिल्ली रवाना हो गए। रविवार को कई और विधायक दिल्ली जा सकते हैं।
सूत्रों से सुनने में आया है कि अपनी कार्यशैली के कारण रावत संघ परिवार के भी निशाने पर हैं। संघ परिवार मंदिरों के सरकारीकरण से बेहद नाखुश है। इसके अलावा धार्मिक नगरी हरिद्वार में शराब बॉटलिंग प्लांट खोले जाने और बूचड़खाना खोलने की इजाजत देने पर भी संघ परिवार ने नाराजगी जताई थी। हालांकि बाद में राज्य सरकार ने बूचड़खाना खोलने के आदेश को वापस ले लिया था। संघ परिवार कुंभ मेले में व्यवस्था को लेकर भी काफी नाराज है। कहने और सुनने में तो दरअसल राज्यों की समीक्षा कर नेतृत्व परिवर्तन करने की योजना पार्टी ने बीते साल मार्च में ही बनाई थी। यह योजना लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव से गुजरने वाले राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहने के कारण बनी थी। इन राज्यों में पार्टी लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के करीब भी नहीं पहुंच पाई। हरियाणा, झारखंड, दिल्ली, महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी के वोट बैंक में 8 से 22 फीसदी तक गिरावट आई। इसके बाद ही राज्यवार समीक्षा कर जरूरत पड़ने पर नेतृत्व परिवर्तन करने की रणनीति बनी थी। हालांकि इसी बीच कोरोना के कहर के कारण इस रणनीति पर अमल में देर हुई है।
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